Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचास्तिकाय प्राभृत विभाव द्रव्य पर्याय है उन ही द्विअणुकादि स्कंधोंमें वर्णादिसे अन्य वर्णादि रूप पलटना सो विभाव गुण पर्याय है । ये जीव पुद्गलके विशेष गुण कहे गए । सामान्य गुण अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलधुत्व आदि हैं जो सर्व द्रव्योंमें साधारण पाए जाते हैं । धर्मादिद्रव्योंके विशेष गुण व पर्याय आगे जहाँ उनका कथन होगा, कहेंगे। इस तरहके गुण पर्यायोंके साथ जिन पाँच अस्तिकायोंकी सत्ता है इससे वे अस्ति रूप हैं । अब कायपनेको कहते हैं । शरीरके समान जो हों उसे काय कहते हैं अर्थात् जिसमें बहुतसे प्रदेशों का समूह हो । इन ही पांच अस्तिकायोंके द्वारा तीन लोककी रचना है। तीन लोकमें जो कोई उत्पाद व्यय प्रौव्यवान पदार्थ हैं वे ही उत्पाद ध्यय प्रौव्य रूप अस्तिपनेको सूचित करते हैं। क्योंकि सूत्रमें यह वचन है "उत्पादव्ययध्रौव्यरूपं सत्" जीव पुद्गल आदि तीन लोकमें भरे हुए तीन लोकके आकार परिणमन करनेवाले हैं । णे लाद, मा त बायो तीन बारें है। गीत और पुद्गल आदि पांच द्रव्य अवयव या अंश या प्रदेश सहित हैं। इसलिये इनमें कायपना इस रूपसे भी जानना चाहिये, केवल पूर्व कहे प्रमाण ही नहीं, काल द्रव्य एक प्रदेशी है इसलिये इसमें कायपना नहीं है। इस तरह अस्तित्व और कायत्व जानना चाहिये । इनमें जो शुद्ध जीवास्तिकायके अनंतज्ञानादि गुणोंकी सत्ता व उसकी सिद्धपर्यायकी सत्ता व उसका शुद्ध असंख्यात प्रदेश रूप कायपना है सो ग्रहण करना योग्य है ।।५।।
इस तरह तीन गाथातक पंचास्तिकायका संक्षेप व्याख्यान करते हुए दूसरा स्थल पूर्ण हुआ ।।३-४-५ ।।
समय व्याख्या गाथा-६ अत्र पञ्चास्तिकायानां कालस्य च द्रव्यत्वमुक्तम् । ते चेव अस्थिकाया तेकालिय-भाव-परिणदा णिच्चा । गच्छंति दविय-भावं परियट्टण-लिंग-संजुत्ता ।।६।।
ते चैवास्तिकायाः त्रैकालिकभावपरिणता नित्याः ।।
गच्छन्ति द्रव्यभावं परिवर्तनलिङ्गसंयुक्ताः ।।६।। द्रव्याणि हि सहक्रमभुवां गुणपर्यायाणामनन्यतयाधारभूतानि भवन्ति, ततो वृत्तवर्तमानवर्तिष्यमाणानां भावानां पर्यायाणां स्वरूपेण परिणतत्वादस्तिकायानां परिवर्तनलिंगस्य कालस्य चास्ति द्रव्यत्वम्। न च तेषां भूतभवद्भविष्यद्भावात्मना परिणममानानामनित्यत्वम् यतस्ते भूतभवद्भविष्यद्भावावस्थास्वपि प्रतिनियतस्वरूपापरित्यागानित्या एव । अत्र कालः पुगलादिपरिवर्तनहेतुत्वात्पुद्लादिपरिवर्तनगम्यमानपर्यायत्वाच्चास्तिकायेष्वन्तर्भावार्थं स परिवर्तनलिंग इत्युक्त इति ।।६।।