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आकासफुट्ठ
आकासानञ्चायतन
आकासफुट त्रि., तत्पु. स. [आकाशस्पृष्ट], शा. अ.. आकाश को स्पर्श कर रहा, आसमान को छू चुका, ला. अ., आकाश को अपना आलम्बन बना चुका -टे नपुं. सप्त. वि., ए. व. - आकासफुटे विआणे विआणञ्चायतनचित्तं अप्पेति, विसुद्धि. 1.321; आकासफुटे विज्ञआणेति कसिणुग्घाटिमाकासं फरित्वा पवत्ते पठमारूप्पविञआणे आरम्मणभूते..., विसुद्धि. महाटी. 1.376. आकासभूत त्रि., [आकाशभूत], आकाश के समान अनाच्छादित, आसमान की भांति खुला हुआ, बाधा रहित, बे-रोक-टोक - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - आकासभूता तेपज्ज, धुवं बुद्धो भविस्ससि, बु. वं. 2.105; आकासभूताति ते कुट्टकवाटपब्बता आवरणं तिरोकरणं कातुं असक्कोन्ता, अजटाकासभूताति अत्थो, बु. वं. अट्ठ. 116. आकासमण्डल नपुं.. [आकाशमण्डल], शा. अ., नभमण्डल,
आकाश का घेरा, ला. अ., आकाश को आलम्बन बनाकर किए जा रहे आकाशकसिण-ध्यान में देखा गया आकाशमण्डल - लं प्र. वि., ए. व. - पटिभागनिमित्तमाकासमण्डलमेव हुत्वा उपट्टाति, वडियमानञ्च वड्वति, विसुद्धि. 1.167. आकासवासी त्रि.. [आकाशवासिन्], आकाश में बसने वाला, अन्तरिक्ष में रहने वाला – सिनो पु., प्र. वि., ब. क. -
ओसधीतिणवासी च, ये च आकासवासिनो, अप. 2.98. आकासविज्ञाण नपुं., कर्म. स. [आकाशविज्ञान]. आकाशविषयक चित्त, आकाश को आलम्बन बनाने वाला अरूपध्यान का चित्त - णं द्वि. वि., ए. व. - तं पनाकासविआणं, अकत्वा मनसा पुन, अभि. अव. 1011. आकाससदिस त्रि., [आकाशसदृक], आकाश जैसा (विस्तृत, अनाच्छादित या अलिप्त) - सो पु., प्र. वि., ए. व. - यससा वित्थतो वीरो, आकाससदिसो, मुनि, अप. 2.160; सेन त कि, ए. व. - आकाससमेनाति अलग्गनटेन चेव अपलिबुद्धद्वेन च आकाससदिसेन, अ. नि. अट्ठ. 3.104. आकाससन्निस्सय पु., तत्पु. स. [आकाशसन्निःश्रय], आकाश का स्पष्ट आधार, - यं द्वि. वि, ए.व. - तत्थ आकाससन्निस्सितान्ति आकाससन्निस्सयं लद्धाव
उप्पज्जति ... ध. स. अट्ठ. 318. आकाससन्निस्सित त्रि., [आकाशसन्निःश्रित], आकाश पर आधारित, आकाश पर आश्रित (स्रोत-विज्ञान)- तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - एवमेव सोतं तम्पे बिलज्झासयं आकाससन्निस्सितं कण्णच्छिद्दकूपकेयेव अज्झासयं करोति,
ध स. अट्ठ, 348; ..., आकाससन्निस्सितं, मनसिकारहेतुकं चतूहि पच्चयेहि उप्पज्जति सोतविआणं, ध. स. अट्ठ. 318. आकाससम त्रि., [आकाशसम], आकाश के समान (अलिप्त, व्यापक, अप्रतिबाधित) – मं, नपुं.. प्र. वि., ए. व. - तदाकाससमं चित्तं, अज्झत्तं सुसमाहितं. थेरगा. 1159;मेन तृ. वि., ए. व. -- आकाससमेनाति अलग्गनट्रेन चेव अपलिबुद्धद्वेन च आकाससदिसेन, अ. नि. अट्ट, 3.104; ... "तदारम्मणञ्च सब्बावन्तं लोक आकाससमेन चेतसा विपुलेन... अब्याबज्झेन फरित्वा विहरिस्सामा ति, म. नि. 1.180; - चित्त त्रि., ब. स. [आकाशसमचित्त], आकाश के समान स्वच्छ एवं निर्मल मन वाला - स्स पु. ष. वि., ए. व. - आकाससमचित्तस्स, निष्पपञ्चस्स झायिनो, अप. 1.250; - मानस त्रि., ब. स., आकाश के समान (स्वच्छ एवं आलम्बन-रहित) चित्त वाला- सो पु., प्र. वि., ए. व. - निप्पपञ्चो निरालम्बो, आकाससममानसो, अप. 2.16. आकाससुत्त नपुं.. स. नि. के अनेक सुत्तों का शीर्षक, स.
नि. 2(2).214; 215; 3(1).60. आकासातिक्कम पु., तत्पु. स. [आकाशातिक्रम], (आलम्बन रूप में) आकाश का अतिक्रमण, आकाश को पार कर जाना - तो प. वि., ए. व. -- एतासु हि ...,
आकासातिक्कमतो दुतिया, ध. स. अट्ठ. 253. आकासानञ्च नपुं॰, आकास + अनन्त + य, अथवा आकास + आनञ्च के योग से व्यु. [आकासानन्त्य], आकाश की अनन्तता, अन्तरहित या सीमारहित आकाश - ञ्चं प्र. वि., ए. व. - आकासानन्तोयेव आकासानञ्च, पटि. म. अट्ठ 1.78; आकासं अनन्तं आकासानन्तं, आकासानन्तमेव आकासानञ्च ध. स. अट्ठ. 248; आकासञ्च तं अनन्तञ्चाति आकासानन्तं ... आकासानन्तमेव आकासानञ्च, सकत्थे भावपच्चयवसेन, अभि. वि. टी. 93. आकासानञ्चायतन नपुं.. तत्पु. स., आकास + आनञ्च + आयतन के योग से व्यु. [बौ. सं. आकाशानन्त्यायतन], 1. आकाश की अनन्तता का वह क्षेत्र, जो चार अरूप ध्यानों में प्रथम अरूप ध्यान वाले चित्त का आलम्बन रहता है, 2. अरूप ब्रह्मलोकों में प्रथम का नाम, क्योंकि इसमें निवास करने वाले प्राणियों को आकाश की अनन्तता का बोध हो जाता है अथवा वे प्रथम अरूप ध्यान को भावित किए हुए होते हैं, 3. नौ अनुपुब्बविहारों/समापत्तियों के बीच पांचवां अनुपुब्बविहार तथा विविध विमोक्षों में से एक - नं प्र. वि., ए. व. - आकासानञ्चायतनं ... अनन्तं, आकासं अनन्तं
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