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अकनिट्ठ
अकम्मच
अकनिट्ठ नपुं., अकनिष्ठ नामक देवों का लोक - अकनिहुँ अकम्प त्रि. [अकम्प्य], वह, जो कांपता न हो, अविचलनीय, गच्छन्तो, ध. प. अट्ठ. 2.169; यामतो याव अकनिहुँ खु. पा. अटल - अकम्पो कम्पयित्वान महिं ठानेसु अट्ठसु. म. वं. अट्ठ. 133; - गामी त्रि., [अकनिष्ठ-गामी], उत्कृष्ट-वर्ग के 15.175. देवों के पास जाने वाला, उत्तम तत्त्वों के समीप जाने वाला अकम्पनीय त्रि., ।कम्प के सं. कृ. का निषे. [अकम्पनीय], - संयोजनानं परिक्खया उद्धंसोतो अकनिट्ठगामी, अ. नि. जिसे हिलाया न जा सके, अविचल, अटल - लोकधम्मेहि 1(1).265; स. नि. 3(2).277; - देवता स्त्री., कर्म स., अकम्पनीयतो ठितत्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.124; तुल. अकम्पिय. उत्तम-वर्ग का देव-प्राणी- एतेनुपायेन याव सुदस्सीदेवतानं अकम्पित त्रि., ।कम्प + इत का निषे. [अकम्पित], अविचल, अकनिट्ठदेवता मित्ता होन्ति, खु. पा. अट्ठ. 96; - ब्रह्मलोक, अटल - अचलितन्ति किलेसेहि अकम्पितं, जा. अट्ठ. पु., कर्मस., अकनिष्ठ ब्रह्माओं का लोक - एतेनेव 5.453; अकम्पितं असञ्चलितं ससण्ठितं, मि. प. 211; - उपायेन याव अकनिटब्रह्मभवनं, ताव महासक्कारविसेसो चित्त त्रि., ब. स. [अकम्पितचित्त], दृढ़ चित्त वाला - निब्बत्ति, खु. पा. अट्ठ. 156.
अट्ठलोकधम्मेहि अकम्पितचित्तं, असोकचित्तं, विरजचित्तं, अकन्त त्रि., कन्त का निषे., तत्पु. स. [अकान्त], असुन्दर, खेमचित्तन्ति, खु. पा. अट्ठ. 124. अप्रिय - अकामं राज कामेसि, अकन्तं कन्तुमिच्छसी ति, अकम्पिय त्रि., कम्पिय का निषे. [अकम्प्य] उपरिवत् - जा. अट्ठ. 5.284; विज्जति यं मनोदुच्चरितस्स अनिट्ठो अकम्पियं अतुलियं, अपुथुज्जनसेवितं, थेरीगा. 201, तुल० अकन्तो अमनापो, अ. नि. 1(1).40.
अकम्पनीय. अकन्तिक/अकन्तिय त्रि., कन्तिक/कन्तिय का निषे.. अकम्पी त्रि., कम्पी का निषे०, तत्पु. स. [अकम्पिन्], न तत्पु. स. [अकान्तिक], अप्रिय - गन्धञ्च ... घत्वा असुचिं कांपने वाला, भयभीत न होने वाला - अच्छम्भी अकम्पी अकन्तियं. स. नि. 2(2).76; गूथं असुचिं अकन्तं परिभुञ्जसि. अवेधी अपरितस्सी विगतलोमहंसो, म. नि. 2.346. पे. व. अट्ठ. 167; अकन्तन्ति अमनापं जेगुच्छं तदे... अकम्म' नपुं., निषे., तत्पु. स. [अकर्मन], नहीं किया गया अकप्पकत त्रि., कप्पकत का निषे॰ [अकल्प्यकृत], वह, जो कर्म, नहीं किये जाने योग्य कर्म, अनुचित कर्म - अकम्म विनय-नियमों के विपरीत तैयार किया गया हो, अनैतिक - हेतं. महाराज, जिनपुत्तानं यदिदं पूजा, मि. प. 173; वग्गकम्म अकप्पकतेन अत्थतं होति, महाव. 331.
अकम्मं न च करणीय, महाव. 411. अकप्पिय' त्रि., कप्पिय का निषे०, तत्पु. स. [अकल्प्य], अकम्म नपुं., निषे., कर्म. स. [अकर्मन]. अकर्मण्यता, अनुपयुक्त, प्रतिष्ठा के विपरीत, विनय-विरुद्ध ऐसा कर्म, निष्क्रियता, अनुचित कार्य - मा अकम्माय रन्धयि, जा. अट्ठ. जिसके लिए भिक्षुसङ्घ ने 'अत्तिचतुत्थकम्म' द्वारा अनुमति न 5.117. दी हो - अकप्पियं अनुलोमेति, कप्पियं पटिबाहति, महाव. अकम्मक' त्रि., [अकर्मक], कर्म न करने वाला, कर्म के 327; अकप्पियं अकरणीयं, पारा. 21; - यद्वेन तृ. वि. में साथ नहीं जुड़ा हुआ - अकम्मकेन हेतुना .... मि. प. प्रयोग; अननुज्ञात अर्थ में प्रयोग - यागुया सद्धिं अकप्पियतुन 139. तेलं अत्थीति होति, ध. स. अठ्ठ. 252; - कत त्रि., विनय अकम्मक केवल व्याकरण के ही संदर्भ में [अकर्मक]. अक. के विरुद्ध किया गया - अनतिरित्तं नाम अकप्पियकतं होति, क्रि०, वह क्रिया, जिसका कोई कर्म न हो - पाचि. 113; - भण्ड नपुं., विनय-नियमों द्वारा अननुमोदित गमनत्थाकम्मकाधारे च, मो. व्या. 5.59. वस्तु - सङ्घस्स बहु अकप्पियभण्डं उप्पन्नं होति, चूळव. अकम्मकाम त्रि., ब. स. [अकर्मकाम], कर्महीन, कर्म न 299; - मंस नपूं, अवैध मांस, विनय-नियमों द्वारा अननुमोदित करने की कामना करने वाला - अकम्मकामा अलसा मांस - अकप्पियमंसं पन अजानित्वा भुत्तेन पच्छा ञत्वापि महग्घसा, अ. नि. 2(2).230; जा. अट्ठ. 2.288. आपत्ति देसेतब्बा, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.35; - सयनानि अकम्मज त्रि., कम्मज का निषे., तत्पु. स. [अकर्मज], कर्म खु. सि. के 25वें अध्याय का शीर्षक: स. उ. प. में द्रष्ट. से उत्पन्न या उद्भूत न होने वाला - यं लोके अकम्मर्ज कप्पिया. के अन्त..
अहेतुजं अनुतुजं .... मि. प. 250. अकप्पिय त्रि., [अकल्प्य], वह, जिसकी संख्या की कल्पना अकम्मञ त्रि., कम्मञ का निषे., तत्पु. स. [अकर्मण्य], न की जा सके, अगण्य - कप्पं नेति अकप्पियो, सु. नि. 866. कार्य करने के लिए अनुपयुक्त, अक्षम - तस्स मे कायो
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