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अकत
हत्थ त्रि०, ब० स० [अकृतहस्त], अप्रशिक्षित, व्यावहारिकजीवन से अपरिचित अथ आगच्छेय्य खत्तियकुमारो असिक्खितो अकतहत्थो अकतयोग्गो अकतूपासनो भीरु छम्भी उन्नासी पलायी. स. नि. 1 (1)117. अकत' नपुं., निषे, तत्पु० स० [ अकृत], हेतु-प्रत्यय-सामग्री से अनुत्पन्न लोकोत्तर परमार्थ-धर्म निर्वाण, निर्वाण की पर्यायवाची संज्ञा के रूप में सूचीबद्ध अनासवं - धुवमनिदरसनाकतापलोकितं अभि. प. 7 टि. असंस्कृतधर्म निर्वाण लोक के समस्त संस्कृत धर्मों से सर्वथा भिन्न अकृत रूप में प्रतिपादित है,
अकतञ्जू' त्रि. कतञ्जू का निषे [ अकृतज्ञ ] हेतु प्रत्ययों द्वारा अनुत्पादित असंस्कृत (= अकृत) धर्म निर्वाण को जानने वाला अस्सद्धो अकत च... स वे उत्तमपोरिसो ध. प. 97 सङ्कारानं खयं गत्वा, अकतज्ञ्जसि ब्राह्मण ध.प. 383 अकतं निब्बानं जानातीति अकतञ्जू घ. प. अड्ड. 1.
353.
अकतञ्जू त्रि, निषे, तत्पु० स० [अ + कृतज्ञ ], दूसरे द्वारा किए गए उपकार को न मानने वाला, आभार न मानने वाला व्यक्ति - अकतञ्ञू होति अकतवेदी, अ. नि. 1 ( 1 ) .78; अक्तरस पोसरस जा. अट्ठ. 3.475, अकतञ्जू मित्तदुखी, जा. अड. 4.34: अकतस्स करियरस, मि. प. 176 - जातक नपुं. जातक संख्या 90 का शीर्षक, जा. अ. 1.360-362; - ता स्त्री०, भाव. [ अकृतज्ञता ], कृतज्ञ न होने की मनोवृत्ति, कृतघ्नता, अकृतज्ञता -- उपञातं यदिदं अकतज्ञ्जता अकतवेदिता अ. नि. 1 (1) 78 रूप त्रि.. कर्म. स. [ अकृतज्ञरूप] कृतघ्न स्वभाव वाला, प्रकृति से ही अकृतज्ञ तथा हि बाला अकतञ्जुरूया, जा. अट्ठ. 4.88. अकतत्त त्रि. ब. स. [अकृतात्मन् ] वह जो असभ्य या अशिष्ट स्वभाव का हो, अशिष्ट प्रकृति का व्यक्ति, अशोभन स्वभाव का पुरुष, मित्रद्रोही नहेव अकतत्तस्स, नयो एतादिसो सिया जा. अड्ड. 5.347; अकतत्तस्साति असम्पादित अत्तभावस्स मित्तदुभिस्स, तदे... अकत्तब्ब त्रि.. निषे, तत्पु. स. [ अकर्तव्य] नहीं करने योग्य कर्म, ऐसा कर्म, जिसे पूरा न किया जा सके- अकरणीयं वा करणीयं वापीति अकत्तब्ब, जा. अट्ठ. 5.225; पटिकम्म / परिकम्म त्रि. कर्म. स. उपचार न करने योग्य, असाध्य, जिसका उपाय द्वारा निराकरण सम्भव न हो - अतेकिच्छाति अकत्तनपरिकम्मा, अ. नि. अ. 3.47रूप त्रि.. कर्म. स. [अकर्तव्यरूप], ऐसा रूप, जिसे बनाने
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अकनि
संवारने की आवश्यकता नहीं हो अकिरियरूपोति अकत्तब्बरूपो, जा० अट्ठ 3.468; अकत्तब्बरूपोयेव, ध. प. अट्ठ. 2.57.
अकत्तब्बत्त नपुं, भाव. [ अकर्तव्यत्व], नहीं करने योग्य होना अरियेहि अकत्तब्बत्ता अनरियेहि च कत्तब्बत्ता अट्ठ. 1.228.
जा.
अकत्ता पु०, निषे, तत्पु. स. [ अकर्तृ], प्रत्युपकार न करने वाला, अकृतज्ञ, कृतघ्न अकत्तारन्ति यकिञ्चि अकरोन्तं जा. अट्ठ. 3.23.
अकत्ति / अकित्ति पु० [ अगस्त्य, पाणिनि 2, 4, 70]. एक ऋषि का नाम अकिति नाम तापसो चरिया 371 समुदो माघो भरतोच. इसि कालपुरक्खतो अङ्गीरसो कस्सपो च किसवच्छो अकत्ति चा ति, जा० अट्ठ. 6.120 - चरिया स्त्री०, चरिया के एक सुत्त का शीर्षक, चरिया 371 वग्ग पु.. चरिया के प्रथम वग्ग का शीर्षक, चरिया. 371-384; द्रष्ट. अकित्ति.
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अकत्थमान त्रि [अकथ्यमान] आत्म-प्रशंसा अथवा आत्मश्लाघा न करने वाला व्यक्ति इतिहन्ति सीलेसु अकत्थमानो सु. नि. 789; अकत्थमानो... अनूपनायिक वाचं अभासमानोति... सु. नि. अड. 2.216. अकथं कथी त्रि, निषे, तत्पु. स. [ अकथङ्कथी] संशयों से रहित, सन्देहों से मुक्त तिष्णो पारङ्गतो झायी, अनेजो अकथंकधी सु. नि. 643: घ. प. 414 अकथंकधी कुसलेसु धम्मेसु दी. नि. 1.185.
अकथना स्त्री, निषे, तत्पु० स० [ अकथना ], नहीं कहना, उपदेश न देना नाचिक्खणा होतीति अकथना अप्पसन्नस्स होति, पे. व. अट्ठ. 193. अकथित त्रि. कथ के भू० क० कृ० का निषे . [ अकथित ]. अनुद्घोषित अघोषित नहीं कहा गया, अव्यक्त, अप्रदर्शित - अब्याकतमेतन्ति सस्सतादिभावेन अकथितत्ता प. प. अट्ठ. 241.
अकदम त्रि. ब. स. [अकर्दम] कीचड़ -रहित, पंक-रहितकतमो रहदो अकद्दमो, धम्मो रहदो अकद्दमो, जा. अड. 3.253 - मोदक, ब. स. [ अकर्दमोदक ]. पडिल जल से रहित, निर्मल जल वाला - अकदमोदके सकटानि नप्पवत्तिंसु, थेरगा. अड. 1.48. अकनिट्ठ' पु.. [अकनिष्ठ ] उच्चतम देवताओं का एक वर्गविशेष - येन अकनिट्ठा देवा तेनुपसङ्कमि, दी. नि. 2.40; अकनिद्वानं देवानं, म. नि. 1.364.
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