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अकत
अकट्ठ अकट्ठ त्रि., [अकृष्ट], बिना जोती हुई भूमि; - पाक त्रि., ब. स. [अकृष्टपाक], प्राकृतिक रूप से उत्पन्न अथवा बिना जोती हुई भूमि में उत्पन्न और परिपक्व धान आदि - अकट्ठपाको सालि पातुरहोसि, दी. नि. 3.65; सालि अकट्ठपाको च, जा. अट्ठ. 7.308; अकट्ठपाकोति अकट्ठयेव भूमिभागे उप्पन्नो, दी. नि. अट्ठ. 3.47; - पाकिम त्रि. उपरिवत् - अकट्ठपाकिम सालिं, परिभञ्जन्ति मानसा, दी. नि. 3.151; अकट्ठपाकिमन्ति अकट्ठे भूमिभागे अरओ सयमेव
जातं, दी. नि. अट्ठ. 3.133. अकठिनता/अकथिनता स्त्री॰, भाव. [अकठिनता]. कोमलता, कर्कशता का अभाव - ... अकथिनता ... मुदुता होति, ध. स. 44; अकथिनता ति अकथिनभावो, ध. स. अट्ठ. 194. अकण त्रि., निषे., ब. स. [अकण], बिना कण वाला चावल
या धान, कण-रहित - सालि पातुरहोसि अकणो अथुसो, दी. नि. 3.65; अकणोति निक्कुण्डको, दी. नि. अट्ठ. 3.47. अकणिक त्रि., निषे. स. [अकणिक], तिलों या मस्सों से रहित (मुख)- अकणिकं वा अकणिकन्ति जानेय्य, दी. नि. 1.71; म. नि. 2.221, सकणिक का विलो... अकण्टक त्रि., निषे०, ब. स. [अकण्टक], शा. अ. कण्टकरहित, ला. अ. विपत्तियों से मुक्त, सुखदायक, राग आदि से मुक्त - खेमट्टिता जनपदा अकण्टका, दी. नि. 1.1203; अकण्टके ... गुम्बे, जा. अट्ठ. 2.98; मग्गो ... अकण्टको अगहणो, वि. व. 164; रागकण्टकादीनं अभावेन अकण्टको, वि. व. अट्ठ. 76; अकण्टका, भिक्खवे, विहरथ निक्कण्टका, भिक्खवे, विहरथ, अ. नि. 3(2).112. अकण्ह त्रि., निषे., तत्पु. स. [अकृष्ण], शा. अ. वह, जो कृष्ण वर्ण का नहीं है, ला. अ. वह, जो अधम अथवा दुष्ट प्रकृति का नहीं है, निर्मल, पवित्र स्वभाव वाला - अकण्हअसुक्कं अकण्हअसुक्कविपाक, अ. नि. 1(2).265%; अकण्ह असुक्कं निब्बानं, दी. नि. 3.198; अकण्हं असुक्कं निब्बानं अभिजायति, अ. नि. 2(2).94; - टि. लोकोत्तरधर्म होने के कारण निर्वाण कृष्ण, शुक्ल आदि प्रपञ्चों का विषय नहीं है। इसी कारण थेरवादियों ने अकण्ह, असुक्क आदि पदों का प्रयोग प्रत्यात्मवेद्य निर्वाण के लिए किया है; - असुक्क-विपाक त्रि., ब. स., [अकृष्णाशुक्लविपाक], ऐसा कर्म, जिसका विपाक न बुरा हो न अच्छा हो - कम्म अकण्हं असुक्कं अकण्हअसुक्कविपाकं .... म. नि. 2.59; अ. नि. 1(2).265; - नेत्त त्रि. ब. स. [अकृष्णनेत्र], वह,
जिसके नेत्र कृष्ण वर्ण के नहीं हों, जिसके नेत्र पिङ्गलवर्ण
के हों - अकण्हनेत्तोति पिङ्गलनेत्तो, जा. अट्ठ. 2.202. अकत' त्रि., [अकृत], क. किसी के द्वारा न किया गया, स्वतः उत्पन्न, अहेतुक - अकतं दुक्कट सेय्यो, पच्छा तप्पति दुक्कट ध. प. 314; स.नि. 1(1).58; अत्तना अकतं पापं, अत्तनाव विसुज्झति, ध. प. 165; पाठा. अकट; ख. न जोती हुई कृषि भूमि, अशिक्षित व्यक्ति, शील आदि से रहित व्यक्ति - अकतं भूमिमागते, जा. अट्ठ. 7.106, अकतबुद्धिनो असिक्खितका, जा. अट्ठ. 3.49; - ताभिनिवेस त्रि., ब. स. [अकृताभिनिवेश], सांसारिक आसक्ति से मुक्त व्यक्ति, लगावरहित - आरद्धवीरियस्स ... अकताभिनिवेसस्स विपस्सकस्स, जा. अट्ठ. 1.117; - तूपसेवन त्रि., ब. स., असत्कृत, उपेक्षित, जिसे सत्कार या सेवा प्राप्त न हुई हो - गिज्झपत्तादीहि अकतूपसेवनेन, जा. अट्ठ. 2.230; - तूपासन त्रि., ब. स. [अकृतोपासन], किसी की सेवाशुश्रूषा या देख-भाल न करने वाला व्यक्ति, विनय, शिल्पों एवं शास्त्रों में अशिक्षित व्यक्ति- अथ आगच्छेय्य खत्तियकुमारो असिक्खितो ... अकतूपासनो, स. नि. 1(1).1173; अकतूपासनोति राजराजमहामत्तानं अदस्सितसरक्खेपो, स. नि. अट्ठ. 1.145; - तोकास त्रि., ब. स. [अकृतावकाश], वह, जिसके सम्बन्ध में कोई अनुमति अथवा अनुमोदन प्राप्त नहीं है- ओयेव अत्थाय अकतं अकतोकासं भूमि समागते ....., जा. अट्ठ. 7.106; - कप्प त्रि., ब. स. [अकृतकल्प], वह वस्तु, जिसके उपयोग की अनुमति भिक्षु-संघ द्वारा प्रदान न की गई हो, संघ द्वारा अनुमोदित न की गई वस्तु या कार्य - अनुजानामि, भिक्खवे, अबीजं निब्बत्तबीजं अकतकप्पं फलं परिभुजितुन्ति, महाव. 291; - कम्म त्रि., ब. स. [अकृतकर्मन], वह, जिसने अपने लिए निर्धारित कर्म को निष्पादित नहीं किया हो, निर्धारित या उचित कर्म को न करने वाला - माणवेहि समागच्छेय्यं कतकम्मेहि वा अकतकम्मेहि वा, अ. नि. 2(1).95; चोरिकं कातुं गच्छन्ता अकतकम्मा नाम, अ. नि. अट्ठ. 3.36; - कल्याण त्रि., ब. स. [अकृतकल्याण], वह, जिसने कल्याणकारी कर्म नहीं किया है, पापकारी - अकतकल्याणा अकतकुसला अकतभीरुत्ताणा, अ. नि. 1(1).181; अकतकल्याणानं अकतकुसलानं अकतभीरुत्ताणानं म. नि. 3.204; - किब्बिस त्रि., ब. स. [अकृतकिल्विष], वह, जिसने कलुषित कर्म अथवा पापकर्म नहीं किए हों, कल्याणकारी कर्मो को करने वाला - कतकल्याणो ... अकतपापो अकतलुद्दो
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