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प्रस्तावना
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परुषचरित्रम' में इस तिथिका उल्लेख किया है। यह भी हो सकता है कि हेमचन्द्राचार्यने अपने ग्रन्थमें इस ग्रन्थका अनुसरण किया हो । कुछ भी हो, दिगम्बर सम्प्रदायमें इस तिथिका कोई उल्लेख नहीं है और न वाल्मीकि रामायण में ही यह उपलब्ध होती है।
[४] ग्रन्थके २२वें उद्देश (पूर्वोद्धृत गाथा नं. ७७-७८ ) में मांसभक्षी राजा सौदासको दक्षिण देश में भ्रमण करते हुए जिनमुनि महाराजका धर्मोपदेश मिला उन्हें श्वेताम्बर लिखा है ।
इन बातों के अतिरिक्त १२ कल्पों (स्वगों) को भी एक मान्यताका इस ग्रन्थमें उल्लेख है. जिसे कुछ विद्वानोंने श्वेताम्बर मान्यता बतलाया है; परन्तु दिगम्बर सम्प्रदायके तिलोयपण्णत्ति और वरांगचरित्र जैसे पराने ग्रन्थों में भी १२ स्वर्गोका उल्लेख है। दिगम्बर सम्प्रदायको इन्द्रों और उनके अधिकृत प्रदेशोंकी अपेक्षा १२ और १६ स्वर्गों की दोनों मान्यताएँ इष्ट हैं जिसका स्पष्टीकरण त्रिलोकसारकी तीन गाथाओं नं. ४५२, ४५३, ४५४ से भले प्रकार हो जाता है ।
[५] इस ग्रन्थके १०२वें उद्देशमें कल्पों तथा नवग्रंवेयकोंके अनन्तर आदित्यादि अनुदिशोंका उल्लेख निम्न प्रकारसे पाया जाता है
कप्पाणं पुण उरि नवगेवेज्जाई मणभिरामाई।
ताण वि अणुद्दिसाई पुरेओ आइच्च पमुहाई ॥१४५।। अनुदिशोंकी यह मान्यता भी खास तौरपर दिगम्बर सम्प्रदायसे सम्बन्ध रखती है-दिगम्बर सम्प्रदायके पट्खण्डागम, धवला, तिलोयपण्णत्ति, लोकविभाग और त्रिलोकसार-जैसे सभी ग्रन्थों में अनुदिशोंका विधान है जब कि श्वेताम्बरीय आगमोंमें इनका कहीं भी उल्लेख नहीं है । उपाध्याय मुनि श्री आत्मारामजीने 'तत्त्वार्थसूत्र जैनागम समन्वय' नामक जो ग्रन्थ हिन्दी अनुवादादिके साथ प्रकाशित किया है उसमें पृष्ठ ११९ पर यह स्पष्ट स्वीकार किया है कि 'आगग ग्रन्थों में नव अनुदिशोंका अस्तित्व नहीं माना है।
[६] इस ग्रन्थके द्वितीय उद्देशमें वीर भगवान्के जन्मादिका कथन करते हुए उनके विवाहित होनेका कोई उल्लेख नहीं किया, प्रत्युत इसमें साफ लिखा है कि जब वे बालभावको छोड़कर तीस वर्षके हो गये तब वैराग्य [ संवेग ] को प्राप्त करके उन्होंने दीक्षा [ प्रव्रज्या ] ले ली ।
इसके सिवाय बीसवें उद्देशमें उनकी गणना वासुपूज्य, मल्लि, अरिष्टनेमि और पार्श्व के साथ उन कुमारश्रमणोंमें-बालब्रह्मचारी जैन तीर्थंकरोंमें की है जो भोग न भोगकर कुमारकालमें ही घरसे निकलकर दीक्षित हुए हैं। वीर प्रभुके विवाहित न होनेकी यह मान्यता भी खास तौरपर दिगम्बर सम्प्रदायसे सम्बन्ध रखती है, क्योंकि दिगम्बर ग्रन्थों में कहीं भी उनके विवाहका विधान नहीं है-सर्वत्र एक स्वरसे उन्हें अविवाहित घोषित किया है, जबकि श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें आम तौरपर उन्हें विवाहित बतलाया है। कल्पसूत्र में
-त्रिषष्टि. पु. च. ७-३७६
१. तदा च ज्येष्ठकृष्णकादश्यामह्नश्च पश्चिमे ।
यामे मतो दशग्रीवश्चतुर्थं नरकं ययौ ।। २. देखो, अनेकान्त वर्ष ४, किरण ११-१२ पृ. ६२४ । ३. उम्मका बालभावो तीसइवरिसो जिणो जाओ ॥२८॥
अह अन्नया कयाई संवेगदरो जिणो मुणियदोसो ।
लोगंतिय परिकिण्णो पन्वज्जमुवागओ वीरो ॥२९।। ४. मल्ली अरिठ्ठणेमी पासो वीरो य वासुपूज्जो य ॥५७।।
एए कुमारसीहा गेहाओ निग्गया जिणवरिंदा । सेसा वि हु रायाणो पुहई भोत्तूण णिक्खंता ॥५८।।
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