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प्रस्तावना
इरिया भाषा तह एसणा य आयाणमेव निक्खेवो । उच्चाराई समिइ पंचमिया होइ नायब्बा ७१।।
-पउमचरिय उ. १४ अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः ॥१९॥ प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ॥२०॥
तत्त्वार्थ. अ. ९ अणसण भणोइरिया वित्तीसंखेव काय परिपीडा । रसपरिचागो य तहा विवित्तसयणासणं चेव ॥७४।। पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं चिय उस्सग्गो तवो य अब्भतरो एसो ।।७५।।
-पउमचरिय उ. १४ इस तुलनापर-से स्पष्ट है कि पउमचरियकी बहत-सी गाथाएँ तत्त्वार्थ सूत्रके सूत्रोंपर-से बनायी गयी है। ग्रन्थके अन्त में ग्रन्थकारने 'एत्ताहे विमलेण सुत्त सहियं गाहानिवद्धं कयं' इस वाक्यके द्वारा ऐसी सूचना भी की है कि उसने सूत्रोंको गाथानिबद्ध किया है । ऐसी हालतमें इस ग्रन्थका तत्त्वार्थ सूत्रके बाद बनना असन्दिग्ध है। तत्त्वार्थ सूत्रके कर्ता आचार्य उमास्वाति श्री कुन्दकुन्दाचार्यके भी बाद हुए है-वे कुन्दकुन्दकी बंशपरम्परामें हए हैं जैसा कि श्रवणवेलगोलादिके अनेक शिलालेखों आदिपर-से प्रकट है। और इसलिए पउमचरियमें उसकी रचनाका जो समय दिया है वह और भी अधिक आपत्तिके योग्य हो जाता है और जरूर ही किसी भूल तथा गलतोका परिणाम जान पड़ता है । ग्रन्थको कुछ खास बातें
पउमचरियके अन्तःपरीक्षणपर-से कुल बातें ऐसी मालूम होती हैं जो खास तौरपर दिगम्बर सम्प्रदायकी मान्यतादिसे सम्बन्ध रखती हैं, कुछ ऐसी हैं जिनका श्वेताम्बर सम्प्रदायकी मान्यतादिसे विशेष सम्बन्ध है और कुछ ऐसी भी हैं जो दोनोंकी मान्यताओंसे कुछ भिन्न प्रकारकी जान पड़ती हैं । यहाँ मैं उन सबको विद्वानोंके विचारार्थ दे देना चाहता हूँ, जिससे उन्हें इस बातका निर्णय करनेमें मदद मिले कि यह ग्रन्थ वास्तव में कौन-से सम्प्रदाय विशेष का है; क्योंकि अभी तक यह पूरे तौरपर निर्णय नहीं हो सका है कि इस ग्रन्थ के कर्ता दिगम्बर, श्वेताम्बर अथवा यापनीय आदि कौन-से सम्प्रदायके आचार्य थे। कुछ विद्वान् इस ग्रन्थको श्वेताम्बर, कुछ दिगम्बर और कुछ यापनीय संघका बतलाते हैं।
[क] दिगम्बर सम्प्रदाय सम्बन्धी [१] ग्रन्थ के प्रथम उद्देशमें कथावतार वर्णनकी एक गाथा निम्न प्रकारसे पायी जाती है
वीरस्स पवरठाणं विपुलगिरिमत्थए मणभिरामे ।
तह इंदभूइ कहियं सेणिय रणस्स नीसेसं ॥३४॥ इसमें बतलाया है कि जब वीर भगवान् का समवसरण विपुलाचल पर्वतपर स्थित था तब वहाँ इन्द्रभूति नामक गौतम गणधरने यह सब रामचरित राजा श्रेणिकसे कहा है। कथावतारकी यह पद्धति खास तौरपर दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखती है। दिगम्बर सम्प्रदायके प्रायः सभी ग्रन्थ, जिनमें कथाके अवतार१. देखो, श्रवणवेलगोलके शिलालेख नं. ४०, १०५, १०८ । २. इस बातको श्वेताम्बरीय ऐतिहासिक विद्वान् श्री मोहनलाल दलीचन्द्रजी देसाई, एडवोकेट बम्बईने भी
'कुमारपालना समयनें एक अपभ्रंश काव्य' नामक अपने लेखमें स्वीकार किया है और इसे भी 'प्रद्युम्न चरित' नामक उक्त काव्य ग्रन्थके कर्ताको दिगम्बर बतलाने में एक हेतु दिया है। देखो, 'जैनाचार्य श्री आत्मानन्द-जन्म शताब्दी-स्मारक ग्रन्थ' गुजराती लेख, प. २६० ।
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