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पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व
पं. श्री जुगल किशोर 'मुखतार' जी महामनीषी, विद्वत् रल एवं अदम्य साहस के धनी थे। मुखार जी का व्यक्तित्व उनके कृतित्व में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। व्यक्ति के जैसे विचार और भावना होती है, उसी अनुरूप उसका लेखन विकसित होता है। अतएव उनके भावों में चिन्तन में सर्वकल्याण, सर्वमैत्री के सूत्र विद्यमान थे, इसी कारण 'मेरी भावना' का सृजन हुआ, जो जन-जन का कण्ठहार बनकर सभी को अपनी भावना प्रतीत होने लगी। निबंधों में भी उन्होंने सामाजिक/राष्ट्रीय एवं सदाचार के सूत्र निबद्ध किये, जो वर्तमान में अत्यन्तोपयोगी हैं। अत: ऐसे निबंधों व काव्यों को, जो कि जीवनशोधक में साधक हैं। जन-जन तक पहुंचाना चाहिए।
__ पूज्य 108 उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज श्रेष्ठ सन्त हैं। मेरा उनके चरणों में नमोऽस्तु।
सन्त जगत की शान हैं । सन्त जगत् के सार। सन्त न होते जगत में, तो जल जाता संसार ॥
पं. निहालचन्द जैन
शा. उच्च मा. वि क्र 3 बीना (सागर) म. प्र पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में पं. जुगलकिशोर मुख्तार सा. के जीवनदर्शन एवं उनके महनीय कर्तव्य पर, देहरा तिजारा (अलवर) में समायोजित संगोष्ठी 98 में पण्डित जी के जीवन के विविध पक्षों पर आमंत्रित विद्वतजनों ने खुलकर बहस की। उनको सम्मान/यश का जो अर्घ्य दिया गया, वह इस महान संत की दूरदृष्टि का सुफल है।
गुणीजनों के प्रति वात्सल्य पूज्य उपाध्यायश्री की जीवन-चर्या बन चुकी है। आपके बहुमुखी व्यक्तित्व को ये सीमित शब्द कैसे अभिव्यक्ति दे सकते हैं? एक ओर आपने सराक जाति के लोगों के संगठन तैयार कर उनमें प्रसुप्त जैन संस्कृति को जगाया और उन्हें यह आत्म विश्वास दिया कि आप लोग जैन धर्म के एक अविभाज्य अंग हैं।