Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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शंका ६ और उसका समाधान
मंगलं भगवान वीरो मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दार्यों जैनधर्मो ऽस्तु मंगलम् ॥
शंका ६ मूल प्रश्न ६-उपादानकी कार्यरूप परिणति में निमिन कारण सहायक होता है या नहीं ?
प्रतिशंका ३ का समाधान इस प्रश्नका पहली बार उत्तर देते हुए हमने तत्वार्थश्लोकवार्तिक अ. ५ सू० १६१० ४१० फे आधारसे यह स्पष्ट कर दिया था कि 'निश्चय नयसे प्रत्येक द्रव्यके उत्पादादिक विससा होकर भी व्यवहार नयसे ही वे सहेतुक प्रतीत होते हैं । इस पर प्रतिशंका २ उपस्थित करते हुए अपर पसने कार्यमें योग्य द्वाशक्तिको अन्तरंग कारण और बलाधान राहायकको बहिरंग कारण बतलाकर लिखा था कि-'जब जब शक्ति व्यक्तिरूपसे आती है तब तब निमित्तकी सहायतासे ही पाती है। इसी सिलसिल में अपर पक्षने अपने पक्षके समर्थन में मीनियष्टिलग स्थित सिविरम अनेक बातें लिखकर और कुछ
आगमरमाण उपस्थित कर उसके बाद लिखा था कि 'पदार्थमें क्रियाकी शक्ति है और वह रहेगी, किन्तु पदार्थ क्रिया तभी करेगा जब बहिरंग कारण मिलेंगे। जब तक बहिरंग कारण नहीं मिलेंगे वह क्रिया नहीं कर सकता, अर्थात् उसकी दाक्ति व्यक्तिरूपमें नहीं आ सकती, जिसके द्वारा शक्ति कपक्ति रूपमें आती है या जिसके बिना शक्ति व्यक्ति रूपमें नहीं आ सकती वही बहिरंग कारण या निमित्त कारण है या यही बलाधान निमित है।
आगे अपर पक्षने परमतमें प्रसिद्ध भरत मुनिके नाट्य-शास्त्रमें लिखे गये रसके लक्षणको प्रमाण रूपमें उपस्थित कर यह भी लिखा था कि 'इससे स्पष्ट है कि मानव हृश्य में विभिन्न प्रकारके रसोंकी उत्पत्ति ही बहिरंग साधनों की देन है।' आदि ।
इस प्रकार अपर पक्षने अपनी नक्त प्रतिशंकामें यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया था कि जब भी कार्यके योग्य द्रव्यशक्ति कार्यरूप होती है सब वह बहिरंग साधनोंक द्वारा ही कार्यरूप परिणमती है अन्यथा नहीं । अपर पक्षने इस प्रतिशंका द्वारा अपने पक्षके समर्थन में वैदिक धर्मानुयायी भरतमुनिका एक ऐसा भी प्रमाण आगमरूपमें उपस्थित किया है जिसे आगम नहीं माना जा सकता । मालूम पड़ता है कि अपर पक्ष इस सीमाको मानने के लिये भी तैयार नहीं है कि इट विषयकी पुष्टि में मूल परम्पराके अनुरूप आचार्यों द्वारा निबद्ध किये गये शास्त्रोंके ही प्रमाण दिये जाय । यही कारण है कि कहीं उसकी ओरसे लौकिक प्रमाण देकर अपने विषयकी पुष्टि करने का प्रयत्न किया गया है और कहीं उसे बैज्ञानिक दृष्टिकोण बतलाकर अपने विषयको पुष्ट किया है। हम नहीं कह सकते कि अपर पनने आने पशके समर्थन के लिये यह मार्ग क्यों अपनाया है, जब कि आगमसे प्रत्येक विषयका ममुचित उत्तर प्राप्त किया जा सकता है।
हम अपना द्वितीय उत्तर लिखते समय इन सब बातों में तो नहीं गये । गात्र आगम प्रमाणोंके आधार से पुनः यह सिद्ध किया कि उपादान केवल द्रव्यशक्ति न होकर अनन्तर पूर्व पर्याययुक्त व्यका नाम उपादान है। वह किसीके द्वारा परिणमाया न जा कर स्वयं अपने कार्यको करता है
और जब वह अपने कार्यको करता है तब अन्य बाह्य सामग्री उसमें निमित्त होती है। उस उत्तरमें हमने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि आगममें बाह्य सामग्रीको निमित्त और कार्यकारी व्यवहार