Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 447
________________ शंका १७ और उसका समाधान ८१७ का निरर्थक प्रयत्न किया है, क्योंकि दोनों अर्थीमें बहुत अन्तर है। अपनी प्रतिशंका २में उस अन्तरको हमने दिखलाया भी है, परन्तु उसपर आपने ध्यान नहीं दिया, इसलिये हम यहाँपर उसको पुनः स्पष्ट कर रहे है बन्धेच मोक्ख हेऊ अगाणो बहारदो यणायन्वी। णिन्छयदी पुण जीवो भगिओ खलु सम्बदरसीहिं ॥२२५॥ आपके द्वारा किया गया अर्थ-व्यवहारमे ( उपचारसे ) बन्ध और मोलका हेतु अन्य पदार्थ (निमित्त )को जानना चाहिये, किन्तु निश्चय ( परमार्थ )से यह जीव स्वयं भोक्षका हेतु है।' हमारे द्वारा किया गया अर्थ-'बन्ध और मोक्षमें जोब निश्चयनवसे कारण होता है अर्थात् उपादान कारण होता है और जीवसे अन्य कर्म-नोकर्मरूप पदाचं व्यवहारनयसे कारण होते है अर्थात् निमित्तकारण होते हैं।' इन दोनों अथोंमें अन्तर यह है कि जहां आगने 'अन्य' शब्दका अर्थ 'निमित्त' किया है वहाँ हमने उसका अर्थ 'कम-नोक्रम' किया है। इस तरह 'अण्णो दवहारदा हेतु' का अर्थ जहाँ आपको निमित्त व्यवहार याने उपचारसे कारण होता है यह मानना पड़ा है, वहाँ हमने उराका अच ऐसा किया है कि 'कम-नोकर्महा वस्तु व्यवहारनवस कारण होती अर्थात् निमित्त कारण होती है।' इस प्रकार जहाँ आपने अपने अर्थम निमित्तम उपचारसे कारणता बतलायी है वह हमने अपने अर्थमं कर्म-नोकर्ममें वास्तविक निमित्तरूपसे कारणता बतलायी है। हमने आपके अर्थको गलत और अपने अर्थको सही इसलिये कहा है कि गाथाके उत्तरार्धमें 'जीवो' याब्दका पाठ है, इसलिये णिच्छयदो पुण जीवो हेऊ इतने वाक्यका यही अर्थ युक्ति-यक्त होगा कि 'जोव निश्चयनयसे कारण है अर्थात् उपादान कारण है।' आपके द्वारा किये गये इस वाक्यक अयंस भी यही आशय निकलता है, इसलिये हमारी समझामें यह नहीं आया कि उत्तराघमें 'जीवो' पदका पाठ रहते हुए और उसका अर्थ भी उपादानरूप न करके 'जीव नामको वस्तु' करते हुए कैसे आप 'अण्णा पक्षका निमित्तरूप अर्थ कर गर्व है । कारण कि जोबसे अन्य वस्तु यदि कोई इस प्रकरणमें गृहीत की जा सकती है तो वह 'कम-नोकर्म' हो होगी। निमित्त जीनसे अन्य वस्तु नहों कहला सकती है, वह सो उपादान वस्तुसे हो अन्य घस्तु कहला सकती है, इसलिये जब गाथामें उपादान शब्द न होकर जीव दाब्दका स्पष्ट पाठ है तो फिर गाचामे 'अण्णों' पदका कम-नोकर्म हो अर्य उपयुक्त हो सकता है, निमित्ताप अर्थ उपयुक्त नहीं हो सकता है। ऐसी स्थिति में जिस प्रकार 'णिच्छयदी पुण जीवी हेऊ' अर्थात् 'जीव निश्चय कारण है' इसका आशय 'उपादानरूपसे कारण है ऐसा आपको लेना पड़ा है उसी प्रकार 'अपणो चवहारदो हेक' का 'कर्म-गोकर्म व्यवहारस कारण है' इस तरह अर्थ करके इसका आशय निमित्तरूपसे कारण है ऐसा आपको लेना चाहिय । हमारे इतने लिखनेका अभिप्राय यह है कि आप गाथाका अपने अभिप्रायके अनुसार अर्थ करके जो निमित्तकारणको असत्यता या कल्पितता सिद्ध करना चाहते है वह कदापि नहीं हो सकती है, क्योंकि हम अपनी प्रतिशंकारम बतला चुके है कि 'एक बस्तुका अपना वस्तुत्व उपादान नहीं है और दूसरी वस्तुका अपना बस्तुत निमित्त नहीं है, किन्तु अपने स्वतन्त्र अस्तित्वको रखती हुई विक्षित कार्यके प्रति आश्रय हानेसे उपादान कारण है और अपने स्वतन्त्र अस्तित्वको रखता हई अन्य विवक्षित वस्तु सहायक होने से निमित्त कारण है। इससे यह भी तात्पर्य निकल आता है कि जो वस्तु अपने होनेवाले कार्यके प्रति आश्रयपनेके आधार पर उपादान होता है वही वस्तु अन्य दूसरो वस्तुमैं होनेवाले कार्यके प्रति सहायकपने के आधारपर

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