Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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अयपुर ( खानिया) तस्वी
प्रश्नका संकेत हमने अपने मूल प्रश्नमें भी किया था जिसे आप यह कहकर अपने उत्तर में टाल दिया है कि 'जिस द्रव्यको जिस कालमें जैसी अवस्था होती है केवली भगवान ठीक उसी प्रकारसे उसे जानते हैं।'
हम पुनः आपसे कहना चाहते है कि थाप हमारे मल प्रश्नका तथा इस प्रतिप्रश्न में दर्शाये गये अन्य प्रपनीका स्पष्ट उत्तर देनेका प्रयत्न करेंगे।
गंत्र मूल प्रश्न-जीव तथा पुद्गलका एवं द्वयणुक आदि स्कन्धोका बन्ध वास्तविक है या अवास्तविक ? यदि अवास्तविक है तो केवली भगवान उसे जानते हैं या नहीं?
प्रतिशंका २ का समाधान मूल प्रश्नका उत्तर अनेक शास्त्रीय प्रमाण देकर पूर्वमें यह दे आये है कि व्यवहार नयकी अपेक्षा बन्धी
प्रतिशंका २ में पूना में प्रश्न उपस्थित किये गये है।
१-इस बन्धमे आपने जो परस्पर बद्ध होनेवाले दो ग्योंमें परस्पर निमित्तता स्वीकार की है, उस परस्पर निमित्ततासे आपका अभिप्राय क्या है ?
२-विशिष्टतर परहार अमगाहसे आपने क्या समझा है !
३--व्यवहारनयका आथय लेकर बध होता है उसमें व्यवहारनय और उसको बन्धमें होनेवाली आनयताका क्या आशय है ?
४--उसके आगे हमारे वक्तव्यको ध्यान में रखकर यह प्रतिशंका की गई है कि पृथक-पृथक् दो आदि परमाणुओंमें तथा स्कन्धस्वरूप दो आदि परमाणुओंमें आप क्या अन्तर स्वीकार करते हैं ? और उस अन्तरको आप वास्तविक मानते हैं या नहीं ?
५--इसके आगे कुछ निस्कर्षको फलितकर यह प्रश्न किया गया है कि सर्वज्ञको इस अवास्तविक पिण्डरूप जगत्का ज्ञान होता है या नहीं?
में पांच मुख्य शंकाएं हैं। समाधान इस प्रकार है--
जीवने अज्ञानरूप मोह, राग, द्वेष परिणाम तथा योग द्रब्धकर्मके बन्धका निमित्त है और ज्ञानावरणादि कर्माका उदय अज्ञानरूप जीव भावाके होने में निमित्त है। इसी प्रकार दो पुद्गल परमाणुलोम स्विस्थ ओर रूअ गणको घधिकता परस्परमें अन्धका निमित्त है, इसी प्रकार पुदगल स्कन्ध में भी बन्धका निमित जान लेना चाहिये । यही यहाँ दो द्रव्योंकी परस्पर बद्धताको निमित्तता है।
जिन्हें अन्यत्र संश्लेष बन्थ लिखा है उसका ठीक स्पष्टीकरण विशिष्टतर परस्पर अवगाह' पदसे होता है। यों तो छहों द्रव्य व्यवहारनय की अपेक्षा एक क्षेत्रमें उपलब्ध होते हैं। परन्तु वहाँ उन सबका निमित.