Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 443
________________ शंका १७ और उसका समाधान परप्रत्ययोऽपि अश्वादिगतिस्थित्यगाहनहेतुत्वात् क्षणे क्षणे तेषां मैदान त सुस्वमपि भिसमिति परप्रत्ययापेक्ष उत्पादो विनाशश्च व्यवहयते । -सर्वा० भ० ५, सूत्र ७, टीका धर्मादीनां पुनरधिकरणं आकाशमित्युख्यते व्यवहारनयवशात् -सर्वा० अ० ५, सूत्र १२, टीका यथार्थका नाम निश्चय और उपचारका नाम ब्यवहार है -मोमा० प्र०, अधि० ७, पृ० २८७ उपचार कर सिस दय्यके भावको अन्य वन्यके भावस्वरूप निरूपण करना सो व्यवहार है।। --मो. मा. प्र. अधिक पृष्ठ ३६२ असद्भूतव्यवहार एष उपचार: --आलापप. पृष्ठ १२२ जीवपुद्गलानां क्रियानतां अवगाहिना अवकाशदानं युकं धर्मस्तिकायादयः पुन: निष्क्रियाः नित्यसम्बन्धास्तेषां कथमवगाहः इति चेन, उपचारतस्तसिद्ध। -सर्वा० अ०५, सूत्र १८ टीका मुझते इति मोहनीयम् । एवं मंते जीवस्य मोहीयत्तं पसज्जदि त्ति णासंकणिज्जं जीवादी ऑभग्णाम्ह पोग्गलदम्ब कम्मणि उबयारेण कत्तारतमारोविय तघा उत्तोदो। -धवला पुस्तक ६, पृ. ११ उक्त उद्धरणों में आए हुए उपचार-व्यवहार-आरोप आदि शब्दोंका प्रयोग एक ही अर्यमें हुआ है यह विद्वानोंके लिए स्पष्ट है 1 प्रतिशंका २ के लेखानुसार 'आदि' और 'व्यवहार' शब्दसे क्या इष्ट है यह बताया गया । अतः यदि हमारे लक्षणसे आप अपने लेखानुसार एकमत हों तो प्रसन्नताकी बात होगी। 'एक वस्तु या धर्मको किसी वस्तु या धर्ममें आरोप करना' उपचारका जो दूसरा लक्षण प्रस्तुत किवा है इसमें हमें कोई विरोध नहीं है, क्योंकि दोनों लक्षण एक ही अर्थ को प्रतिपादित करते हैं। निमित्तको कारणताके उपचारके सम्बन्धमें जो नयचक्रको (पु.८३) २३५ दी गाया जनतत्त्वमीमांसामे पृ० १६ पर दी गई है उसके अर्थको गलत बताकर व्यर्थको आपत्ति उठाई गई है। गाया इस प्रकार है। अंधे च मोक्ष हेऊ अण्णी ववहारदो य गायब्बी। णिच्यदी पुण जीवो मणियो खसु सम्बदरसीहि ॥२३५।। इस गाथाका अर्थ जो हमने किया है वह इस प्रकार है अर्थ-व्यवहारसे (उपनारसे) बन्ध और मोक्षका हेतु अन्य पदार्थ (गिमित्त) को जानना चाहिए, किन्तु निश्चय (परमार्थ) से यह जीव स्वयं बन्धका हेतु है ऐसा सर्वजदेवने कहा है। प्रतियांकामें यह आलोचना की गई है कि 'हमारी समझमें यह नहीं आता कि गाथामें पठित 'अन्य (अपणो) शब्मका अर्थ वहाँ 'निमित्त' किस आधारपर किया गमा है....गाथामें उपादान शब्द जब महों है, 'जीव' शब्द पाया जाता है।'

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