Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 367
________________ शंका १६ और उसका समाधान ৬३७ पुनरप्यध्यात्ममायया नया उच्यन्ते तावन्मूलनयो हो निश्चयो व्यवहारश्च तत्र निश्चयनयोभेदपि व्यवहारो भेदविषयः श्रापद्धति अर्थ — अध्यात्मभाषाकी अपेक्षा नय कहते है। मूलनय दो हैनिश्वयनय और व्यवहारनय | उनमे अभेदविषयाला निश्चयतय है और भेद विश्वाला हार है। , १ व्यवहार विकल्प भेव पर्याय श्री नेमण्द्र सिद्धान्त इनका एक हो अर्थ है अर्थात् वे पर्यायवाचक शब्द है। इसी बातको भी पाया ४९२ में कहा है ० जवहारो व विमप्यो भेदो तह पजओ ति एयो । अर्थात् - व्यवहार, विकल्प, भेद तथा पर्याय इन शब्दोंका एक अर्थ हुँ । इससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ पर विकल्प भेद तथा पर्याय विवक्षा कथन हो यह सब व्यवहारनय कथन है । इसके विपरीत जहाँ निविकल्प अभेद तथा अन्य विवक्षासे कथन हो वह निश्चयनका कथन है । श्री समयसार प्रत्थमें भी व्यवहारनपको भेदाधित पर्यायाति तथा पराश्रित कहा है और निश्चयनयको अभेदाचित स्वाधित और स्वाधित कहा है चहारेणुवदिस्वद्द णाणिस्स चरित्त दंसणं णाणं । ण वि जाणं चरितं ण दंसणं वाणगो सुद्धो ॥ ७ ॥ अर्थ - ज्ञानी के चारित्र, दर्शन, ज्ञान ये तोन भाग व्यवहारनय द्वारा कहे जाते हैं। नियमनयसे ज्ञान भी नहीं, चारित्र भी नहीं, दर्शन भी नहीं शानो तो एक शायक है। यद्यपि ज्ञान दर्शन, चारित्रको भेदविवक्षा के कारण व्यवहारनयके द्वारा जीवके कहे हैं तथापि ये सत्यार्थ है वास्तविक है । 'व्यवहारनयः पर्यायाश्रितरखात्' 'निश्चयन वस्तु द्रव्याश्रितत्वात् ।' - समयसार गाथा ५६ टीका अर्थात् व्यवहारनव पर्यायाश्रित और निश्वयवाति है। atest शुद्ध तथा अशुद्ध दशा वास्तविक है, सत्य है तथापि जीवके नयका विषय कहा गया है। नियथा विषय वैकालिक द्रश्यस्वभाव है और पर्याय अवस्तु है । आमाथितो विश्वचनयः पराश्रितो व्यवहारयः । होनेके कारण वहारइस दृष्टिमें कायाकि -समयसार गा० २७२ को टीका अर्थ-विस्वके आश्रित है और व्यवहारय परके आश्रित है। यद्यपि ज्ञेय-ज्ञायकसम्बन्ध, आधार माधेयसम्बन्ध निमित्तनैमित्तिकसम्बन्ध, प्रकाश्य प्रकाशक आदि सम्बन्धपराश्रित होने से व्यवहारका विषय बन्ध प्रत्यक्ष तथा वास्तविक है। इस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि निश्वय व व्यवहारनयके लक्षणोंपर प्रकाश डाला गया और यह भी सिद्ध कर दिया गया है कि व्यवहारनय सत्य है । यहाँतक मूल प्रश्न समाप्त हो गया । आपके मात्र पुनः पुनः इस बातपर जोर दिया गया कि अमुक कथन मात्र व्यवहारवसे ९३

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