Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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प्रथम दौर
शंका १३ पुण्यका फल जब अरहंत नफ होना कहा गया है ( पुण्यफला भरहंता प्र. सा. ) और जिससे यह आत्मा तीन लोकका अधिपति बनता है उसे 'सर्वातिशायि' पुण्य घतलाया है ( सर्वातिशायि पुण्यं तत् त्रैलोक्याधिपतित्वकृत् ) । तब ऐसे पुण्यको हीनोपमा देकर त्याज्य कहना और मानना क्या शास्त्रोक्त है ?
__समाधान १ यह तो सुनिदित सत्य है कि सर्वत्र प्रयोजनके अनुसार उपदेश दिया जाता है। ऐसी उपदेश देने की पद्धति है। पुण्य-पापका आसव-बन्ध पदार्थोंमे अन्तर्भाव होता हैं और ये दोनों दार्थ अजीव पदार्थके साथ संसारके कारण है । इसलिये भगवान् कुंदवुदने हेतु, स्वभाव, अनुभव और आश्रयके भेदसे पुण्य और पापमें भेद होनेपर, भी द्रव्याथिकनयसे उनमें अभेद बतलाते हुए उन्हें संसारका कारण कहा है। वे कहते है--
कम्ममसुहं कुसीलं सुहकम्मं चावि जाणह सुसीलं ।
कह सं होदि सुसीलं जं संसारं पवेसेदि ।।१४५।। अर्थ :-अशुभ कर्म कुशील है और शुभ कर्म सुशील है ऐसा तुम जानते हो, किन्तु वह सुशील कैसे हो सकता है जो शुभकर्म ( जीवको) संसारमें प्रवेश कराता है ।।१४५।।
आचार्य महाराज इस विषय में इतना ही कहना पर्याप्त न मानकर उसे प्रात्माको स्वाधीनताका नाश करनेयाला तक बतलाते है। वे कहते हैं
तम्हा दु कुसीलेहि य रायं मा कृणह मा व संसर्ग ।
साहीणी हि विणासो कुसीलसंसग्गरायेण ||१४७१। अर्थ :-इसलिये इन दोनों कुशीलोंके साथ राग मत करो अथवा संसर्ग भी मत कगे, क्योंकि कुशीलके साथ संसर्ग और राग करनेसे स्वाघोनताका नाश होता है ॥१४॥
अशुभ कर्मका फल किप्तीको इष्ट नहीं है, इसलिये उसकी इच्छा तो किसोको नहीं होतो । किन्तु पुण्य कर्मके फलका प्रलोभन छुटना बड़ा कठिन है, इसलिए प्रत्येक मन्य प्राणीको मोक्षमार्गमें रुचि उत्पन्न हो और पुण्य तथा पुण्यके फलमें हो अटक न जाय इस अभिप्रायसे सभी आचार्य उसकी निन्दा करते आ रहे है। इसी अभिप्रायको ध्यानमें रखकर पं० प्रथर द्यानतरायजीने दशलक्षणधर्म पुजामें स्त्री को विषवेलकी उपमा दी है । इसका अभिप्राय यह नहीं कि वे परम पुण्यशालिनी तीर्थकरकी माता अथवा ब्राह्मी, सुन्दरी, गीता, राजुल, चन्दना आदि जगत्पूजनीय सती साध्वी स्त्रियोंकी निन्दा करना चाहते हैं। इसो प्रकार अशुचि भावनामें शरीर-भोगोंके प्रति अरुचि उत्पन्न करने के अभिप्रायसे यदि पारीरको चिन उत्पन्न करनेवाले अपने नौ द्वारासे