Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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जयपुर ( खानिया) तत्वचर्चा पंचास्तिकायको टोकामें आचार्य अमृतचन्द्र सूरिने लिखा है कि
निश्चयन्यवहारयोः साध्यसाधन भावस्वात् सुवर्ण-सुवर्णपाषाणषत् । अतएष उभयनयानता पारमेश्वरी तीर्थ-प्रवसना इति ।
-पंचास्तिकाय गाधा १५९ की टीका तथानिश्चयमोक्षमार्गसाधनभावेन पूर्षादिष्टम्यवहारमोक्षमार्गनिर्देशोऽयम् । चवहारमोक्षमार्ग-साध्यभावन निश्चयमोक्षमार्गोपन्यासोऽयम् ।
-पंचास्तिकाय गाथा १६०-१६१ की टोका निश्चयनय और व्यवहारनय परस्पर साध्यसापकभाव है। जैसे सोना साध्य है और सुवर्ण पाषाण साधन है । इन दोनों नयोंफे ही अधीन सर्वज्ञ वीतरागके धर्मतीर्थको प्रवृत्ति होती है।
निश्चय मोक्षमार्गका माधन व्यवहार मोक्षमार्ग है। व्यबहार मोक्षमार्गसे ही निश्चय मोक्षमार्ग सिद्ध होता है।
श्री परमात्मप्रकाशमें श्रीआचार्य कहते हैं किएवं निश्चय-ध्यवहाराभ्यां साध्यसाधकमायेन तीधगुरुदेवतास्वरूपं ज्ञातव्यम् ।
-परमात्माप्रकाश श्लोक ७की टीका तथासाधको व्यवहारमोक्षमार्ग: साध्यो निश्चयमोक्षमार्ग:।
-परमात्माकाशीका १४२ प्रर्थ-इस प्रकार निश्चय और व्यवहारके साध्य-साधकभावसे तीर्थ, गुरु और देवताका स्वरूप जानना चाहिये।
सचाव्यवहार मोक्षमार्ग साधक है और निश्चय मोक्षमार्ग साध्य है। श्री पंचास्तिकाय टीकाम आचार्य जयसेन स्वामी लिखते है किनिश्चयच्यवहारमोक्षकरणे सति मोक्षकार्य संमवति इति ।
-श्री पंचास्तिकाय गाधा १०६ अर्थ-निश्चय और व्यवहार इन दोनों मोक्षकरणोंसे (निश्चय और व्यवहार रत्नत्रयसे) ही मोक्षरूप कार्य सिद्ध होता है।
व्यबहारधर्मकी मोक्ष-साधकता प्रमाण देते हए अन्त में हम इलना लिखना भी आवश्यक समझते हैं कि व्यवहारधर्मको धवल सिद्धान्त आदि सभी शास्त्रों में मोक्षसाधक धर्म बताया गया है। परन्तु अनेक प्रमाण सामने रहते हुए भी आप व्यवहारधर्मको घर्म नहीं मानते है । किन्तु पुण्य कहकर उसे संसारका कारण समझ रहे है । ऐसो धारणासे नीचे लिखी बातें पैदा होती है
१. मुनिधर्म जो मोसप्राप्तिका साक्षात् साधन है, वह धर्म नहीं ठहरता है। प्रत्युत मुनियों को पर्या संसार-वर्द्धक ठहरती है। शास्त्रामें मुनियों को अरहंतका लघुनन्दन कहा गया है।
२. श्रावधर्मकी क्रियाएँ भी धर्म नहीं ठहरती हैं, ऐसी दशामें क्रियात्मक चारित्रका कोई मूल्य नहीं रहता। आजकल वैसे हो लोग धर्मसे शिथिल बन रहे है । कुछ लोग देवदर्शन छोड़ चुके है । भक्ष्याभक्ष्य एवं