Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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तृतीय दौर
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शंका ८
दिव्यध्वनिका केवलज्ञान अथवा केबलीकी आत्मासे कोई सम्बन्ध है या नहीं ? यदि है तो कौन सम्बन्ध है ? वह सत्यार्थ या असत्यार्थ ? दिव्यध्वनि प्रामाणिक है या अप्रामाणिक ? यदि प्रामाणिक है तो उसकी प्रामाणिकता स्वाश्रित है या केवली भगवान्की आत्मा के सम्बन्धसे ?
प्रतिशंका ३
इस प्रश्नके प्रथम उत्तरमे आपने दिव्यध्वनिकी उत्पत्तिके विषय में बहुत कुछ विवेचन किया जबकि दिव्यष्यनिकी उत्पत्ति सम्बन्ध में प्रश्न नहीं था। उसके पश्चात् दिव्यध्वनिकी स्वाति प्रामाणिकता बतला कर अपना उत्तर समाप्त कर दिया । दिव्यध्वनिका केवलज्ञान या केवलीकी आत्मा सम्बन्धविषयक प्रश्नको आपने छुआ तक नहीं | चुनाचें हमने अपने प्रत्युत्तर में मूल प्रश्नके निम्न पाँच खण्ड करके आपसे पुनः उन प्रथम तीन खण्डोंके उत्तर देने को जोर दिया जिनको बापने अपने प्रथम उत्तर में ओझल कर दिया था और दिनि जड़ होने के कारण उसको स्वाश्रित प्रामाणिकताका मण्डन करते हुए वार्षग्रन्थोंके प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध किया था कि दिव्यध्वनिके वक्ता केवलज्ञानी हैं और वक्ताको प्रमाणताचे वचनोंको प्रमाणता होती है तथा दिव्यध्वनि केवलज्ञानका कार्य है ।
मूल प्रश्नके खण्ड
१ - दिव्यध्वनिका केवलज्ञान अथवा केवलोकी आत्मारी कोई सम्बन्ध है या नहीं ? २- दिव्यध्वनिका केवलज्ञान अथवा केवली आत्मा के साथ कौन सम्बन्ध है ?
३ - (दव्यवनिका केवलज्ञान अथवा केवलोके साथ सम्बन्ध सत्यार्थ है या असत्यार्थ ?
४ - दिव्यध्वनि प्रामाणिक है या अप्रामाणिक ।
५- दिव्यध्वनि प्रामाणिक है तो उसको प्रामाणिकता स्वाधित है या केवली भगवानकी आत्माके सम्बन्धसे ?
आपने अपने द्वितीय उत्तरमें भी प्रश्नके प्रथम तीन खण्डों का जो उत्तर दिया है उसमें केवली जिन और दिव्यध्वनि के सम्बन्धको गोलमाल शब्दों में बतलाने का तो प्रयत्न किया गया है, किन्तु केवलज्ञान व केवलोकी आत्माका दिव्यध्वनिसे वथा सम्बन्ध इस विषय में एक भी शब्द नहीं लिखा। इससे ज्ञात होता है कि आप प्रश्न के प्रथम तीन खण्डों का उत्तर देना नहीं चाहते, क्योंकि इनका यथार्थ उत्तर देने में आपकी मान्यता स्खण्डिस हो जाती है। आपने हमारे इन आर्पग्रन्थोंके प्रमाणों में से कुछ प्रमाणों को तो सर्वथा मोशल कर दिया। हमने नाना आग्रन्थोंके प्रमाण देकर यह सिद्ध किया था कि दिव्यध्वनिको प्रमाणता वक्ताको प्रमाणतासे है और केवलज्ञानका कार्य है, अतः दिव्यध्वनिमें पराश्रित प्रमाणता है। मात्र चार प्रमाणोंके