Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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जयपुर ( खानिया) सस्वचर्चा नियमसे होजाती है, क्योंकि यह क्रिया उसका बाह्य परिकर है, किन्तु वह सम्यक् व्यवहारचारित्र निश्चय चारित्रके होनेपर ही कहलाती है। अतएव हमने जो कुछ भी लिखा है वह आगमको ध्यान में रख लिखा है। दिगम्बर परम्परामें ऐसे व्यवहारको ही समीचीन माना गया है जो निश्चयपूर्वक होता है। पुरुषार्थसिद्धयुपायमें ऐसे मोशमार्गका ही निर्देश किया गया है । अतएव आत्मसिद्धिके इच्छुक प्रत्येक घरिमाका कर्तव्य का वह योहानी कानाको स्थापित करे, उसीका ध्यान करे, उसीको अनुभव गोचर करे और उसी आत्मामें निरन्तर रमे। अन्य द्रव्योंमें भूलकर भी विहार न करे।
इसप्रकार प्रस्तुत प्रतिशंकाका सांगोपांग समाधान किया।