Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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शंका ९ और उसका समाधान
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आचार्य महाराजने उपर्युक्त विधानसे यह बात स्पष्ट कर दी है कि आत्माके राग द्वेष वादि भाव मोहनीय आदि द्रव्यकर्म के निमित्तसे हुआ करते है, बिना सन द्रव्यकमौके निमित्तके कभी नहीं होते। इसलिये द्रव्यकर्म आत्माके रागादि भावकोंके उत्पन्न होनेके निमित्त कारण है।
राग द्वेष आदि परिणामोंके निमित्तसे मोहनीय आदि द्रव्यमौका बंध हुआ करता है, इस कारण उन राग द्वेष आदि आत्माके विकारी भावोंको भावबंध कहा गया है। तदनुसार दृष्यबंधके निमित्तसे भावबंध और भावबंधके निमित्तसे द्रव्यबंध हुआ करता है।
इनमें से द्रव्यबंध पर पदार्थ है और भावबंध यात्माका अपना विकारी भाव है, अतः वह आत्मस्वरूप
आत्माको परतंत्रताका कारण परद्रयरूप द्रम्पकर्म ही मुख्यतासे होता है और परद्रव्य होने के कारण वास्तवमें आत्माके साथ बंध उन जानावरण आदि कार्मण व्यका हम करता है।
नमः धीवीतरागाय मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमी गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यों जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥
शंका ९ मूल शंका-सांसारिक जीव बद्ध है या मुक्त ? यदि बद्ध है तो किससे बँधा हुआ है और किसीसे बँधा हुआ होनेसे वह परतन्त्र है या नहीं ? यदि वह बद्ध है तो उसके बन्धनसे छूटने का उपाय क्या है
प्रतिशंका २ का समाधान इस प्रश्न का उत्तर व्यवहारनय और निश्चपनपको अपेक्षा पूर्वमें दे आये हैं । इसका आशय यह हैएक द्रव्यके गुण धर्मको अन्य व्यका कहना यह अमद्भत व्यवहारनय है और स्वाश्रित कथन करना यह निश्चयनय है। इस प्रकार संक्षेपमें ये इन दोनों नयोंके लक्षण हैं 1 अतएव निश्वयनयको अपेक्षा विचार करने पर आत्मा स्वयं अपने अपराधके कारण बद्ध है, अन्य किसीने बलात् बाँध रखा हो और उसके कारण बह बघ रहा हो ऐसा नहीं है। परन्तु असद्भुत ध्यबहारनयको अपेक्षा उसके उस अपराधको ज्ञानावरणादि कर्मोपर आरोपितकर यह कहा जाता है कि ज्ञानावरणादि कमौके कारण वह बद्ध है। यह वस्तुस्थिति है। इसका सम्यक निर्णय अनेक प्रमाणोंके साथ पिछले उत्तर में किया गया था। किन्तु प्रतिशंका २ को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि सांसारिक जीव बद्ध क्यों है इसका मुख्य कारण ज्ञानावरणादि कोको समझा जा रहा है। प्रतिशंका २ में यह तो स्वीकार कर लिया.है कि जब आत्माके प्रबल पुरुषार्थसे दूग्यफर्मों मोहनीय आदिका छय होता है तब विकारका निमित्त कारण हट जानसे आत्माके राग-द्वेष आदि नैमित्तिक विकार भाव दूर हो जाते है।' पर इसके साथ दूसरे स्थलपर उसी प्रतिशंकामें यह भी लिखा है कि मोहनीय आदि द्रव्यकर्म, राग द्वेष आदि आत्माके विभाष भावोंके प्रेरक निमित्त कारण हैं और राग द्वेष आदि आत्माके विकृत माव मोहनीय बादि द्रव्यकर्मबन्धके प्रेरक निमित्त कारण है।' इस प्रकार ये परस्पर विरुद्ध विचार एक ही लेखमें प्रगट