Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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जयपुर ( खनिया ) तस्वी आसन और विहाररूप काय योसम्बन्धी क्रियाएँ तथा निश्चय-यवहारके धर्मोपदेशको लिए हुए दिव्यध्वनिरूप बचनयोगसम्बन्धी क्रिया सहज हो होती है 1 अतएव दिव्यध्वनिका तीर्थकर प्रकृति आदिके उदयके साथ असद्भूत व्यवहार नयकी अपेक्षा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध मुख्यतासे यहाँ पर स्वीकार किया गया है। कारण कि तीर्थकर प्रकृति आदिका उदय स्वतन्त्र द्रव्यको अवस्था है और दिध्यध्वनि स्वतन्त्र द्रव्यको अवस्था है। और दो या दो से अधिक द्रव्यों और उनकी पर्यायोंमें जो सम्बन्ध होता है वह असद्भुत ही होता है।
अब रही दिव्यध्वनिकी प्रामाणिकता और अप्रामाणिकताकी बात सो व्यवहार निश्चयमोक्षमार्ग छह ट्रव्य, पाँच अस्लिकाय, नौ पदार्थ और सात तत्त्व आदिके यमार्थ निरूपण की उसको सहज योग्यता होनेसे उसकी प्रामाणिकता स्वाचित है। परन्तु व्यवहार नयको अपेक्षा विचार करने पर वह पराश्चित कही जाती है । उसकी प्रामाणिकता स्वाधित है इस तथ्यको स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री अमतचन्द्र समयसार गाथा ४१५ की टोकामें कहते हैं
य: खलु समयसारभूतस्य भगवतः परमात्मनोऽस्य विश्वप्रकाशकत्वेन विश्वसमयस्य प्रतिपादनात् स्वयं शब्दब्रह्मायमाणं शास्त्रमिदम् ।
तात्पर्य यह है कि यह शास्त्र विश्वका प्रकाशक होनेसे विश्व समयस्वरूप समयसारभूत भगवान् आत्माका प्रसिपादन करता है, इसलिये जो स्वयं शब्दब्रह्मके समान है। इसी तथ्यको घे पुनः इन शब्दोंमें स्वीकार करते है
स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वैाख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः ।
स्वरूपगुप्तस्य न किञ्चिदस्ति कर्तव्यमेवामृतचन्द्रसूरः ॥२७॥ अर्थ-जिसने अपनी शक्सिसे वस्तुतत्वको भली भाँति कहा है ऐसे शब्दोंने इस समयकी व्याख्या को है, स्वरूपगुप्त अमृतचन्द्र सूरिका कुछ मो कर्तव्य नहीं है ।।२७८।।
वितीय दौर
शंका ८ प्रश्न यह था-दिव्यध्वनिका केवलज्ञान अथवा केवली आत्मासे कोई सम्बन्ध है या नहीं ? यदि है तो कौन सम्बन्ध है ? बह सत्यार्थ है या असत्यार्थ ? दिव्यध्वनि प्रामाणिक है या अप्रामाणिक ? यदि प्रामाणिक है तो उसकी प्रामाणिकता स्वाश्रित है या केवली भगवान्की आत्माके सम्बन्धसे ?
प्रतिशंका २ उक्त प्रश्न निम्नलिखित स्खण्ड है(१) विध्यध्वनिका केबलज्ञान अथवा केवली आत्मासे कोई सम्बन्ध है या नहीं ?