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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
___ठाणांग सूत्र में "पंचेहित ठाणेहिं समणे णिग्गंथे अचेलए सचेलया हिणिग्गंधीहिं सद्धिं सेवसयाणे नाइक्कमई।" अर्थात् और भी पंचकारणों से वस्त्र रहित साधु वस्त्र सहित साध्वी के साथ रहकर जिनाज्ञा का उल्लंघन करते हैं।18
बौद्ध साहित्य में भी जैन श्रमणों को अचेलक से सम्बोधित किया है। जैसे पाटिलपुत्तो अचेलो।19 चीनी त्रिपिटक में भी "अचेलक" शब्द जैन श्रमण के लिए प्रयुक्त हुआ है।20 बौद्ध टीकाकार बुद्धघोष "अचेलक से नग्न" भाव ही लेते है।21
8. ऋषि - जैन श्रमण का एक नाम ऋषि भी हैं। परन्तु यह शब्द विशेष रुप से ऋद्धिधारी
श्रमणों के लिए हुआ है। आ. कुन्दकुन्द के अनुसार-भय, राय, दोस, मोहो, कोहा, लोहो या जस्स आयत्ता।
पंच महव्वयधारा आयदणं महरिसी भणियं
___ अर्थात् मद, राग, दोष, मोह, क्रोध, लोभ, माया आदि से रहित जो पंचमहाव्रत धारी हैं, वे महाऋषि हैं।22 मूलाचार में अनगारों में भी जो महान है वह ऋषि कहा है।23
9. गणी - श्रमणों के गण (समूह) में रहने के कारण अथवा गण के प्रमुख होने से
"गणी" इस नाम से भी जाने जाते हैं। मूलाचार समाचार अधिकार की गा. 43 में "विस्समिदो तदिवसं मीमंसित्ता णिवेदयदि गणिणे में गणिणे अर्थात् आचार्य का
उल्लेख है। 10. गुरु - धर्म क्षेत्र में महान होने के कारण "गुरु" नाम का भी उल्लेख मिलता है।
"मूलाचार के समाचार अधिकार में गा. 25 में" एवं आपुच्छिता सगवर गुरुणा
विसज्जिओ संतो........." का उल्लेख प्राप्त है। 11. जिनलिंगी - वीतरागी सर्वज्ञ भगवान द्वारा उपदिष्ट' नग्न भेष का पालन करने के
कारण दिगम्बर जैन श्रमण इस नाम से भी जाने जाते हैं।24 12. तपस्वी - विशेष रुप से तप में लीन होने के कारण समन्तभद्राचार्य ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में तपस्वी शब्द से भी सम्बोधित किया है
___ "विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः ।
ज्ञान-ध्यान-तपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते।। 13. दिगम्बर - दिशायें ही उनके वस्त्र हैं अतः जैन श्रमण दिगम्बर भी कहलाते हैं। मुनि कनकामर अपने को दिगम्बर शब्द से ही प्रकट करते हैं
"वइरायहं हुवइं दियंवरेण।
सुपसिद्ध णाम कणयामरेण ।।26 हिन्दु पुराणादि27 साहित्य में भी जैन श्रमण इसी नाम से उल्लिखित हुए हैं।