Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 323
________________ 322 जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा यथार्थ मार्गदर्शक आपने इस विषय का आर्षप्रणीत जिनागमों से कठोर अभ्यास किया है। अतः आचार्य प्रणीत आगम का सार-संक्षेप आपने अपनी प्रतिध्वनि रूप से पुस्तक द्वारा प्रकाशित किया है। इसका यद्यपि संपादन आपके शब्दों में है, तथापि उसका अन्तरंग स्वरूप, भावभासना आचार्य प्रणीत होने से निर्दोष है। वर्तमान में जो आजकल श्रमण दीक्षा लेते हैं, उनको भी श्रमण का यथार्थ स्वरूप क्या है, इसका मार्गदर्शन करने में अत्यन्त उपयोगी है। समीक्षा दृष्टि से आपका प्रयत्न प्रशंसनीय है, तथा वर्तमान युग में यथार्थ मार्गदर्शन करने वाला है। नरेन्द्र कुमार भिसीकर, शास्त्री न्यायतीर्थ, महामहिमोपाध्याय, सोलापुर ( महा. ) मुनिधर्म की आचार सहिंता प्रस्तुत समीक्ष्य प्रकाशन को मुनिधर्म की आगम प्ररूपित आचार-संहिता कहना अधिक उपयुक्त होगा। इसमें चरणानुयोग की प्रधानता से सांगोपांग मुनिधर्म के व्यवहारचारित्र का दिग्दर्शन कराया गया है। शिथिलाचार और शिथिलाचारियों की आगम सम्मत समीक्षा की गयी है। श्रमणाचार की आगमिक ऐतिहासिक एवं पौराणिक परम्परा का ज्ञान कराया गया है। शिथिलाचार के पोषक संघ भेदों की उत्पत्ति का इतिहास भी विशेष पठनीय है। यह शोध-निबन्ध आगमिक एवं आध्यात्मिक श्रमणचर्या की पावन परंपरा का ज्ञान कराने में समर्थ होगा - ऐसी आशा है। विद्वान लेखक ने आर्ष ग्रन्थों का आलोडन करके एक आवश्यक कमी की पूर्ति की है। उनकी साहित्य साधना विशेष प्रशंसनीय है। ... - प्रकाशचन्द "हितैषी" "सम्पादक" - सन्मति सन्देश (मासिक) दिल्ली एक युग कृति डॉ. योगेश जैन की इस कृति का सांगोपांग अवलोकन किया। पढ़ने के पश्चात् यह कहने में संकोच नहीं कि इस कृति ने युगानुरुप आवश्यकता की पूर्ति की है, और यह एक स्ववैशिष्ट्यपूर्ण "युगकृति" के रूप में प्रशंसित होगीः यह मेरा दृढ़तम विश्वास है। भाषा की सरलता व उसका अटूट प्रवाह तथा तार्किक/दृष्टान्तिक शैली के अतिरिक्त विषय की स्पष्टता, निर्भीकता व निष्पक्षता के साथ प्रस्तुतीकरण अत्यधिक प्रशंसनीय है। इस लेखक की विद्यार्थी जीवन से ज्ञानार्जन की बुभुक्षा रही है, उसमें निरन्तर वृद्धि होती रहे, ऐसी मंगल कामना है। यह प्रबन्ध शोधार्थी व आत्मार्थी दोनों के लिए समान रूप से मननीय व पठनीय होगा. ऐसी मुझे आशा है। प्रो. महादेव नष्कर अध्यक्ष - जैनदर्शन विभाग, जैन संस्कृत कालेज. - यपुर

Loading...

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330