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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
श्रमण-श्रावक अनायास ही उससे लाभान्वित हुये बिना नहीं रहेंगे। लेखक ने विद्यमान श्रमण संस्था की विकृतियों को उनके परिष्कार की भावना से उजागर करने का साहस किया है। आशा है, लेखक के प्रयास सार्थक सिद्ध होंगे और वीतराग धर्म को. वीतरागमार्ग- वीतरागत्व को पुनस्थापित करने का परम पुरुषार्थ प्रदर्शित करेगा।
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डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल कार्मिक प्रबन्धक
ओरियन्ट पेपर मिल्स अमलाई (मध्यप्रदेश )
तथ्यात्मक विवेचना
डॉ. योगेश चन्द्र जैन द्वारा लिखित "जैन श्रमणः स्वरूप और समीक्षा के अध्ययन से जैन श्रमणों के अन्तो बाह्य व्यक्तित्व को समझने की प्रेरणा मिलती है, श्रमण संस्कृति का गौरव पुरः स्थापित होता है। मुक्ति साधना के लिये स्वावलम्बन ही परम आवश्यक तत्व है। वस्तुतः श्रमणों का सारा जीवन अपने अन्तोबाह्य व्यक्तित्व से स्वावलम्बन की जीती-जागती मिसाल प्रस्तुत करता है। स्वालम्बन या स्वाधीनता के बिना मुक्ति की कल्पना भी नहीं हो सकती है अतः सिद्ध होता है कि मुक्तिमार्ग केवल स्वावलम्बी साधना के सहारे ही अधिगत हो सकता है। भारतीय संस्कृति में स्वावलम्बन पूर्ण साधना का मुखरित रूप हमें जैन श्रमणों के जीवन में दृष्टिगोचर होता है। अतएव उन्हें मुक्तिका सच्चा अधिकारी अथवा अग्रगण्य मुक्ति साधक मानने में कोई बाधा नहीं है। डॉ. जैन ने जैनश्रमण की तथ्यात्मक विवेचना प्रस्तुत कर अपनी निर्भीक एवं शास्त्रनिष्ठ बुद्धि को उजागर किया है। एतदर्थ वे साधुवादार्ह हैं।
डॉ. श्रीगंस कुमार सिंघई अध्यक्ष - जैनदर्शन विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, जयपुर।
स्पष्ट विवेचना
"जैन श्रमणः स्वरूप और समीक्षा" एक खोजपूर्ण कृति लेखक की लगन और साधना को प्रमाणित करती है। प्रस्तुत कृति में जैन श्रमण के धार्मिक ऐतिहासिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में प्रामाणिक तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है। तथा जैन श्रमण का स्वरूप उनकी आचार-संहिता और भेद-प्रभेदों को पांच अध्यायों में समावेश करके अपनी स्पष्ट विवेचना से पाठकोपयोगी बनाया है। 7
डॉ. योगेशचन्द जैन के इस प्रयास से शुद्ध आम्नाय में श्रमण परम्परा का आगमानुकूल विकास हो सकेगा।
डॉ. सनतकुमार जैन
प्रवक्ता - संस्कृत
श्री दिगम्बर जैन आ. संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर (राज.).