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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
"कुछ श्रमण अपने मार्ग एवं उद्देश्य से भ्रष्ट हो जाते हैं, जिनको जैनधर्म में अवंदनीय ही कहा है। भ्रष्ट करने में बहुत बड़ा योगदान श्रावकों का है, यदि वे ऐसे श्रमणों को संरक्षण देना बन्द कर दें, तो वह अंकुश में आ सकता है।" और साधुचरित्र के विषय पर उन्होंने अत्यन्त करुणाभाव से बताया है " चरित्र एक सफेद कागज है। एक बार कलंकित हो जाने पर इसका पूर्ववत् उज्जवल होना कठिन है।" इस तरह लेखक अपनी इस कृति को अत्यन्त परिश्रम से लिखकर सबके अभिनन्दन के योग्य हुए हैं। इस प्रकार की अनेक कृतियाँ डॉ. योगेश द्वारा रचित होकर प्रकाशित होवें, इस तरह हार्दिक इच्छा रखता हूँ। एम.वी. पाटिल, बेलगांव (कर्नाटक)
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सराहनीय श्रम
एक विहंगावलोकन से कह सकता हूँ कि आपका श्रम सराहनीय है। श्रमण के क्रिया-कलापों पर प्रस्तुत किया गया चिन्तन मुनिचर्या को प्रभावित करेगा। आशा है बढ़ती हुई शिथिलता में सुधार होगा। मैं आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ ।
डॉ. कस्तूरचन्द जैन "सुमन" जैन विद्या शोध-संस्थान, महावीर जी (राज.)
ननु नच की गुंजाइश नहीं
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध आद्योपान्त पढ़ा। लेखक ने जैन श्रमण के स्वरूप की जो आगम सम्मत व्याख्या/समीक्षा प्रस्तुत की है, उसमें तो ननु नच की कोई गुंजाइश है ही नहीं; किन्तु वर्तमान सन्दर्भों में भी जो कुछ लिखा है वह भी अत्यन्त पठनीय एवं मननीय है। लेखक की निर्भीकता एवं साहस के लिए बधाई। उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं। नरेन्द्र कुमार जैन शास्त्री, जैनदर्शनाचार्य, एम.ए. (द्वय) बी. एड, केन्द्रीय विद्यालय, खरगोन (म. प्र. )
कलम की पहरेदारी
उत्थापन से लेकर उपसंहार तक लेखक ने विषय पर बहुत सजगता से परिक्रमा की है। इस परिक्रमा ने प्रज्ञा की गरिमा का उत्कृष्ट परिचय भी दिया है। भयावह गहन अंधकार में निष्ठा से पहरा देते सिपाही की तरह लेखक ने कहीं-कहीं तो अज्ञानांधकार व पाखण्ड के विरुद्ध हाथ में मजबूती से कलम पकड़कर विषय पर निष्ठापूर्ण पहरेदारी की है, जो श्लाघनीय व सराहनीय है।
भानुकुमार शास्त्री, एम.ए. ( दर्शनशास्त्र), ललितपुर