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षडावश्यक / सामायिक
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अहोरात्रि के षड़ावश्यक कर्म हैं।
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श्रमण की प्रातः कालीन वेला षडावश्यक से प्रारम्भ होती है। षडावश्यक का सामान्यतः स्वरूप मूलगुण प्रकरण में कर आए हैं । यहाँ पर उनका विशेष विवेचन प्रस्तुत
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सामायिक :
"सामायिक" तद्धित का रूप है। अतः समः सर्वेषां समानो यो सर्गः पुण्यं वा समायस्तस्मिन् भवं समये भवं वा सामायिकमिति । यहाँ "समाय" इकण् प्रत्यय होकर बना । इस समाय से जो शोभित होता है वह सामायिक है समय में जो होवे वह सामायिक है ।
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है
समय शब्द का अर्थ इस प्रकार से है- " सम" उपसर्ग है जिसका अर्थ "एक पना" है और "अय गतौ " धातु है, जिसका अर्थ गमन और ज्ञान भी है, अतः एक साथ ही जानना और परिणमन करना, यह दोनों क्रियाएं एकत्वपूर्वक करे वह समय है । यह जीव नामक पदार्थ एकत्व पूर्वक एक समय में परिणमन भी करता है और जानता भी है । 11 समय है, और उस समय में जो स्थित हो उस स्थिति को सामायिक कहते हैं, अथवा जो उस अवस्था से शोभित हो वह अवस्था सामायिक गुण है।
अतः वह
निश्चयनय से जैन श्रमण का यह सामायिक ही मूलगुण है, जैसा कि मूलगुण के विवेचन में लिखा था । इस " सामायिक संयम" का मुख्यता से उपदेश अजितनाथ से लेकर पार्श्वनाथ तक के तीर्थंकरों ने दिया था, और छेदोपस्थापना संयम का वर्णन ऋषभदेव और महावीर ने दिया था 12
तीर्थंकर ऋषभदेव के तीर्थ के समय भोगभूमि समाप्त होकर कर्मभूमि प्रारम्भ हुयी थी । अतः उस समय के शिष्य बहुत ही सरल किन्तु अज्ञान स्वभाव वाले थे, तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर के समय अत्यन्त निकृष्ट वातावरण का प्रारम्भ हो चुका था, अतः उस समय के शिष्य बहुत ही कुटिल परिणामी और जड़ स्वभावी थे। इसीलिए इन दोनों तीर्थंकरों ने छेद अर्थात् भेद के उपस्थापन अर्थात् कथन रूप पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया था। शेष बाईस तीर्थंकरों के समय के शिष्य विशेष बुद्धिमान थे, इसीलिए उन तीर्थंकरों ने मात्र सर्व सावद्ययोग के त्यागरूप एक सामायिक संयम का ही उपदेश दिया है, क्योंकि उनके लिए उतना ही पर्याप्त था । मात्र सामायिक संयम के उपदेश में 'उनकी वृत्ति सर्व पापों से विरत हो जाती थी13 अर्थात् उनकी सम्पूर्ण वृत्ति सहज विवेक पूर्ण होती थी। इस तरह पंचव्रतों के भेद रूप से 28 मूलगुणों का स्वतः ही पालन हो जाया करता था । इतने विवेकी स्वयं होते थे, उनको 28 मूलगुणों के व्याख्यान की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी । परन्तु आज महावीर का शासन चल रहा है, इस समय वक्र स्वभाव के जीव होने के कारण