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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
से संस्थान, पुद्गल द्रव्य का लोकस्वरूप से अथवा द्वीप, नदी, समुद्र, पर्वत, पृथ्वी आदि रूप से संस्थान तथा जीव द्रव्यं का समचतुरस आदि रूप से संस्थान द्रव्य संस्थान है। गुणों का द्रव्याकार रूप से संस्थान गुणसंस्थान है। पर्यायों का दीर्घ, ह्रस्व, गोल, नाटक, तिर्यन्च आदि रूप से संस्थान पर्याय संस्थान है -ये सब चिन्ह लोक हैं। उदयप्राप्त क्रोधादि कषाय लोक हैं। नारक आदि योनियों में वर्तमान जीव भवलोक है। तीव्र राग-द्वेष आदि भावलोक है।
पर्याय लोक के चार भेद है-जीव के ज्ञानादि, पुद्गल के स्पर्श आदि, धर्म-अधर्म, आकाश काल के गतिहेतुता, स्थितिहेतुता, अवगाहहेतुता और वर्तना आदि ये द्रव्यों के गुण, रत्नप्रभा पृथिवी, जम्बूद्रीप, श्रृजु विमान आदि क्षेत्र पर्याय, आयु के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद, जीव के असंख्यात लोक-प्रमाण शुभ अशुभ भाव, जो कर्मों के ग्रहण और त्याग में समर्थ होते हैं, ये संक्षेप में पर्याय लोक के चार भेद हैं। इस प्रकार अर्हन्तों का, केवलियों का, जिनों का, लोक के उद्योतकों का, और धर्मतीर्थ के कर्ता ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों का भक्ति पूर्वक गुण कीर्तन करना चतुर्विशतिस्तव है।28
पं. आशाधर ने व्यवहार एवं निश्चय नय की पद्धति पूर्वक व्यवहार स्तव के पाँच भेद किये हैं। उन्होंने कहा कि-व्यवहारनय से तो स्तव, नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, रूप पाँच प्रकार का है परन्तु परमार्थ से एक भावस्तव है।29
भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों के एक हजार आठ नाम जो कि महापुराण के पच्चीसवें पर्व में प्ररूपित हैं जैसे भगवान को श्रीमान, स्वयम्भू, वृषभ, शम्भव आदि कहा गया है-यहाँ पर तीर्थंकरों के अन्तरंग ज्ञानादिरूप और बहिरंग समवशरण अष्ट महाप्रातिहार्यादि रूप श्री अर्थात् लक्ष्मी होती है अतः उनका "श्रीमान" नाम सार्थक है। भगवान पर के उपदेश के बिना स्वयं ही मोक्षमार्ग को जानकर और उसका अनुष्ठान करके अनन्त चतुष्ट्य रूप होते हैं, इसलिए उन्हें स्वयम्भू कहते हैं। वे वृप अर्थात् धर्म से शोभित होते हैं इसलिए उन्हें वृषभ कहते हैं। उनसे भव्य जीवों को सुख होता है इसलिए शम्भव कहते हैं। इसी प्रकार सभी नाम सार्थक हैं।30
इस प्रकार का नामस्तव व्यावहारिक है कारण कि परमात्मा तो वाणी से अगम्य है। जिनसेन स्वामी ने कहा है कि हे भगवान! इन नामों के गोचर होते हुए भी आप वचनों के अगोचर माने गये हैं। फिर भी स्तवन करने वाला आपसे इच्छित फल प्राप्त कर लेता हैं इसमें कोई सन्देह नहीं है। सामान्य की विवक्षा होने पर यह नामस्तव चौबीसा ही तीर्थंकर का है क्योंकि सभी तीर्थंकर "श्रीमान्" आदि नामों के द्वारा कह जा सकते हैं। विशप की अपेक्षा चौबीसों तीर्थंकर का भिन्न-भिन्न नामों से स्तवन करना भी नामस्तव है।