Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan

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Page 277
________________ 276 जैन श्रमण : स्वरुप और समीक्षा 220. मूलाचार 1/34; भग. आ. 1208 विजयोदया; अन.ध. 9/94 221. प्रव. सार मू. 229 222. प.पु. 4/97 223. सा.घ. 4/35 224. वही 4/34 225. आवश्यकचूर्णि पूर्वभाग पृ. 271; आचारांग चूर्णि पृ. 309 226. श्रमण महावीर पृ. 109 227. भ.आ.वि. उत्थानिका 142 228. भ.आ.गा. 142-150 229. वही गा. 152 की विजयोदया टीका। 230. मू.आ. 304-306 231. भ.आ.गा. 154 की विजयोदया 232. मूलाचार गा. 146-47 आचारवृत्ति सहित 233. वही गा. 148 234. मू. आ. गा. क्रमशः 150-155, 989, 960 235. सज्जनचित्तवल्लभ श्लोक 18, "एकाकीविहरत्यनास्थित वलीवर्दो यथास्वेच्छया 236. त्यक्तगुरुकुल एकाकित्वेन स्वच्छन्दविहारी जिनवचनदूपको मृगचारित्रः स्वच्छन्दः इति (चारित्र धर्मप्रकाश पं. 202) 237. सू.पा.गा. 9 238. आदिपुराण पृ. 545 ( हस्तलिखितप्रति, अलीगंज जैन मन्दिर ) 235. सूत्र कृतांग, पृ. 142 ( सम्पादक मधुकर मुनि, ब्यावर प्रकाशन ) 240. दशा श्रु. स्क.सू. 1-2; दशवै.अ. 9 सू. 3-4 241. भ.आ.गा. 626-638. 229 242. वही गा. 228, 625 243. वही गा. 228, 635 244. मूलाचार गा. 949, ज्ञानार्णव, 27/31, अन. घ. 3/30 245. किरातार्जुनीय सर्ग 2, श्लोक 6 245. मू. आ. गा. 950, भ. आ. गा. 231, बो. पा.गा. 42, त.सू. 7/6, स.सि. 9/19, रा.वा. 9/6/16, घ. 13/5, 4, 26/58/8, रत्न. श्रा. 111 की टीका, पद्मपुराण पर्व 30,36 247. म. आ. 785, बो. पा.टी. 42, भ. आ. गा. 234, 236, 237 248. कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा 449, पृ. 336-69 249. वर्षाकालस्य चतुर्षु मासेषु एकत्रैवावस्थानं भ्रमणत्यागः,- मूलाचार सवृत्ति 10/18, भ.आ.वि.टी. 421 250. भ.आ. वि. टी. 421; वृह्तकल्पभाष्य भाग 3 (श्वे. ) गा. 2736-37 251. आचारांग सूत्र 3/3/1/111 252. वृहत् कल्प भाष्य 1/36

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