Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan
View full book text
________________
274
164. मूलाचार 9/47, भ. आ. विजयोदया टीका 1200
165. कुलं संबंधि समवातो, तदालयो वा - दशवै. अगस्त्यसिंह चूर्णि पृ. 103 166. दशवै. हरिभद्रीय टीका पत्र 166
167. मूल्ग़चार 6/79
168. दरिद्र कुलानि उत्क्रमाढ्य कुलानि न प्रविशेत् । भ.आ.गा. 1200 की विजयोदया
169. भ. आ. विजयोदया टीका गा. 1200
170. दशवैकालिक 5/1/17
171. निशीथ 16/17
172. दशवैकालिक 5/1/16
173. वदसीलगुणा जम्हा भिक्खा चरिया विसुद्धिएं ढंति ।
तम्हा भिक्खाचरियं सोहिय साहू सदा विहारिज्ज ।। मूलाचार 10/112 174. वही 10/113
175. णवकोडी परिसुद्धं दसदोस विवज्जियं मलविसुद्ध ।
मुंजुंति पाणिपत्ते परेण दत्तं परघरम्मि ।। वही 9/45
176. मूलाचार वृत्ति 6 / 63, 9/45
177. स्थानांग 9 / 30
जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
178. णहरोमजंतु अट्ठो कण कुंडयपूयिम्मरूहिरभ्रंसाणि । मूलाचार 6/65
179. मूलाचार गा. 484 की पृ. 363
180. वही गा. 482-83 (ज्ञानपीठ प्रकाशन )
181. प्रवचनसारोद्वार गा. 742, पृ. 299
182. उत्तराध्ययन- 32.11
183. कल्पसूत्र 9 वां अध्याय पृ. 112, प्रकाशक टीका, संस्करण वि. सं. 1962
184. वही।
-
भीमसिंह माणेक बम्बई, गुजराती
185. "जैन आचार" पृ. 157 (ले. मोहनलाल मेहता )
186. कल्पसूत्र - गुजराती टीका 9 वा व्याख्यान 111 पृष्ठ; संस्करण - विक्रम संवत् 1962, प्रकाशक भीमसिंह माणेक, बम्बई ।
187. आचारांगसूत्र 10 वां अध्याय, चतुर्थ उद्देश्य के 565 वां सूत्र पृ. 175 प्रो. रावजीभाई देवराज द्वारा प्रकाशित - संस्करण वि. सं. 1962, मोरबी काठियावाड 188. आचारांग सूत्र, 10 वां अध्याय 9 वां उद्देश्य 619 सूत्र पृ. 201, प्रो. रावजीभाई द्वारा प्रकाशित
-
189.
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास भाग 1 पृष्ठ 111 से 112 / प्रकाशक पा.वि. श्र. / सम्पादक दलसुखमलवणिया । मोहनलाल मेहता 190. भगवती आराधना गा. सं. 1200 की विजयोदया टी.

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330