Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 304
________________ सन्दर्भ सूची 303 16. (मूलाराधना-629,831/4-पवत्ती अल्पश्रुतः सन्सर्वसंघमर्यादाचरितज्ञः प्रवर्तकः ) 17. मूलाचार आचारवृत्ति गा. 156 18. ति.पं. 4/967. 19. घ. 9/4, 1, 44/127/7. 20. त.सू. 9/18. 21. अथवा सावद्यं कर्म हिंसादिभेदेन विकल्पनिर्वृत्ति छेदोपस्थापना - तत्वार्थवा. पृ. 617. 22. सर्व सावधनिवृत्ति लक्षण सामायिकापेक्षया एकं व्रतं, तदेव छेदोपस्थापनापेक्ष्या पंचविधम् । स.सि.अ. 7. 23. व्रत समिति गुप्ति ----- स्वस्थितिक्रिया।। 6 ।। आचारसार 24. तीसं वासो जम्मे, वासुपुधत्तं खु तित्थयर मूले। ___ पच्चक्खाणं पढिदो, संक्षूणदुगाउयविहारो।। 473 ।। गो.जी. का. 25. भ.आ.वि. 155. 26. गो.क.जी.प्र. 527. 27. वही 28. स.सि. 9/46; श्वे. स्थानांग के 194 सूत्र में भी श्रमणों के इतने ही भेद मिलते हैं। मिलते हैं। 29. रा.वा. 9/46/6-12. 30. स.सि. 9/47, फुटनोट में अन्य वुस्तक से निम्न उपलब्ध पाठ-"कृष्णलेश्यादित्रयं तयोः कथमिति चेदुच्यते" 31. वही, तत्वार्थ वृत्ति 9/47. 32. स.सि. 9/46, रा. वा. 9/46/1. 33. रा.वा. 9/47, चा.सा. 104 34. सवार्थ सिद्धि - मोहशबलयुक्ता बकुशा, 9/46. 35. सवार्थ सिद्धि 9/47, एवं त.सू. रामजीभाई टीका के आधार पर। 36. न्या. वि. टी. 2/1/1/8 साध्याविनाभावनियमनिर्णायकलक्षणं वक्ष्यमाणं लिंगम। 37. धवल 13/5, 5, 43/245/6, - किंलक्खणलिंग/अण्णहाणुववतिलक्खणं । 38. मूलाचार गा. 908. 39. प्रवचनसार गा. 205-6. 40. भावपाहुड - गा. 56, कुन्दकुन्दकृत 41. रयणसार गा. 87. 42. रा.वा. 9/46/11 दृष्टया सह यत्र रूपं तत्र निर्ग्रन्थ व्यपदेशः न रूपमात्र इति। 43. भ.आ.गा. 770; शीलपाहुड गा. 5.. 44. स.सा.गा. 410 ण वि एस -------- जिणा वेति । 45. लिंगपाहुड, गा. 2.

Loading...

Page Navigation
1 ... 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330