Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan

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Page 303
________________ 302 जैन श्रमण : स्वरुप और समीक्षा जैन श्रमणों ने सभी भाषाओं में एवं सभी विद्याओं में साहित्य लिखकर अपनी विद्वत्ता व विशालता का परिचय देकर सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधकर, दैनन्दिन राष्ट्र एवं समाज की साहित्यिक एवं आध्यात्मिक सेवा तो करते ही रहे, साथ ही उनसे विभिन्न राजवंश समय-समय पर प्रभावित होकर सन्मार्ग पाकर अहिंसात्मक कार्य में सक्रिय रहे। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त आचार्य भद्रबाहु से ही प्रभावित होकर दीक्षाग्रहण कर दक्षिण प्रदेश के प्रति प्रस्थान किया। सम्भवतः मौर्यवंश के अहिंसक होने का कारण श्रमणों से प्रभावित होना ही है। अशोक जीवन के पूर्वार्द्ध में जैन था, स्पष्ट है कि वह श्रमण चर्या से प्रभावित था, उत्तरार्द्ध में वह बौद्ध धर्म में दीक्षित हुआ। सम्राट सम्प्रति ने तो जैन शासन की उन्नति हेतु अनेक स्तम्भ, स्तूप एवं स्मारकों का निर्माण कराया। सम्राट खारवेल ने भी श्रमणों के लिए गुफाएँ एवं चैत्य बनवाएँ । वीर चामुण्डराय तो स्पष्ट रूप से श्रमणों से प्रभावित थे जिन्होंने "श्रवणबेलगोला" में विश्ववंद्य भगवान बाहुबलि की प्रतिमा स्थापित की थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रमणों का साहित्य की प्रत्येक विद्या में एवं संस्कृति के उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। जैन श्रमण आत्मकल्याण तो करते ही है, साथ ही पर-कल्याण भी उनसे कम न हुआ। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनका महत्त्वपूर्ण अविस्मरणीय अवदान है। सन्दर्भ सूची 1. प्र.सा. ता.वृ. 2/4/20, श्रमणशब्दवाच्यानाचार्योपाध्यायसाधूश्च।। 2. भा. पा. मूल. व.टी. 122/273-74, "साधु शब्देनाचार्योपाध्यायसर्वसधवोलभ्यन्ते। 3. पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध - 629-644 श्लोक। 4. पंचाध्यामी उत्तरार्द्ध 709-713. 5. वही, श्लोक 638. 6. भ. आ.गा. 418 आवश्यक नियुक्ति (श्वे. ) 994.. 7. घ. 1/11, 1/29-31, 48 मूलाचार 158 नियमसार गा. 73. 8. "आचारन्ति तस्माद् व्रतानित्याचार्याः । स.सि. 9/24, रा.वा. 9/24.3, भ. आ. गा. 419-आचारं पण्चविहिं ----- आयारवं णाम, पंचाध्यायी उ. 64. 9. भ.आ.गा. 419. 10. बो. पा. टी. में उद्धृत 1/72. 11. द्वादशतप दशधर्मजुत, पालें पंचाचार। . षट् आवश त्रयगुप्ति गुण, आचारज पदसार ।। 19 ।। इप्ट छत्तीसी। 12. घ. 1/1, 1, 1/32/50. 13. वही 1/1, 1, 1/50/1. 14. मूलाचार गा. 511. 15. रा.वा. 9/24/4; स.सि. 9/24.

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