Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan
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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
46. भावपाहुड गा. 2, 74; 100, योगसार 5/57. 47. मोक्षमार्ग प्रकाशक अध्याय 9, पृ. 462, ( सस्ती ग्रन्थमाला, देहली, द्वितीय संस्करण) 48. समयसार गा. 408-410. 49. मूलाचार गा. 900. 50. भावपाहुड गा. 72. 51. समाधिशतक श्लोक 87. 52. मो. पा.गा. 57. 53. भा.पा.गा. 6, 68, 111. 54. मो.पा.गा. 61. 55. भा.पा.गा. 49, 69, 71, 90. 56. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा गा. 431 की टीका, पृष्ठ 324. 57. समयसार गा. 436, तात्पर्य वृत्ति टी. (जैन समाज सोलापुर प्रकाशन 1983 ) 58. वही 59. प्रवचनसार गा. 20, आदाय तं पि लिंगं गुरुणा परमेण तं णमंसित्ता। 60. भा.पा.टी.गा. 73, भावलिंगेन द्रव्यलिंगं द्रव्यलिंगेन भावलिंग भवतीत्युभयमेव
प्रमाणीकर्तव्यं । एकान्तमतेन तेन सर्व नष्टं भवतीति वेदितव्यम् । 61. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग 4 पृ. 338 के आधार पर 62. प्राचीन भारत पृ. 66, ले.प्रो.ई.जे. रायसेन। 63. कन्नड साहित्य की रूपरेखा पृ. 4, ले.डॉ. हिरण्यमय ।

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