Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan

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Page 306
________________ उपसंहार पूर्व अध्यायों में प्रस्तुत जैन श्रमणाचार का अनुसन्धानात्मक अध्ययन उनकी आचार संहिता को स्पष्ट करता ही है, साथ ही उनकी सर्वमान्यता, लोकप्रियता, व श्रेष्ठता की भी सहज सिद्धि कर देता है । एवं कुछ ऐसे समाधान भी प्रस्तुत करता है जो कि जैन धर्म / दर्शन और विशेषतः जैन आचार संहिता को लेकर उठते हैं । जैन धर्म के पारम्परिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को इतना प्राचीन सिद्ध करते हैं, जिसका कि उपलब्ध ऐतिहासिक अनुसन्धान के आधार पर उसकी कालगणना अशक्य है । चूंकि जैन श्रमणाचार ऋषभदेव से जुड़ता है, अतः इस चर्या को किसी काल में बाँधना न्यायोचित नहीं है । वेदों में प्राप्त ॠषभदेव के सम्माननीय संदर्भ नग्न जैन मुनि की सार्वजनिकता, लोकमान्यता तो सिद्ध करता ही है, साथ ही वेदों से नग्न वृत्ति रूप धर्म संस्कृति की सिद्धि भी होती है। निश्चित रूप से वैदिक पुरुष जैन मुनि से अत्यन्त प्रभावित रहे हैं, तभी उन्होंने जैन श्रमण को भगवान की तरह स्थान दिया । परन्तु परवर्ती वेदानुयायी लोगों ने साम्प्रदायिकतावश | इन तथ्यों को या तो गौण किया या फिर अभाव । तथापि जैन श्रमणों ने अपनी अहिंसक प्रवृत्ति से सम्पूर्ण देश, काल की परम्परा को प्रभावित किया, और आज सम्पूर्ण विश्व के लोगों की अहिंसा के प्रति रुचि सच्चे जैन श्रमणों की ही देन है । जैन श्रमण के यद्यपि विशेषणों की अपेक्षा से विभिन्न पर्यायवाची नाम हैं तथापि उनके पुरुषार्थ साहसिकता एवं आध्यात्मिक अभिरुचि के द्योतक के रूप में "भ्रमण " शब्द ही निर्दोष लक्षण युक्त अर्थात् अव्याप्ति, अतिव्याप्ति, एवं असंभव लक्षण के दोषों से रहित, श्रेष्ठ नाम है। जैन श्रमणों के पौरुष से हिन्दु संस्कृति तो प्रभावित रही ही, इस्लामी संस्कृति भी प्रभावित हुयी है। प्राचीन भारतीय पुरातत्व तो मानों जैन श्रमणों के गीत ही गा रहा है, उसकी एक-एक ईंट जैन श्रमण की अहिंसक एवं अपरिग्रह चर्या से अर्चित व चर्चित हैं, मोहन जोडारो, अशोक के शासन लेख, अहिच्छेत्र के पुरातत्व, कौशाम्बी, कुहाऊं का गुप्त कालीन पुरातत्व, राजगृह एवं वंगाल का पुरातत्व, कादम्ब राजाओं के प्रसिद्ध एलोरा की गुफाऐं इसके लिए जीवन्त प्रमाण हैं ।

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