Book Title: Jain Shraman Swarup Aur Samiksha
Author(s): Yogeshchandra Jain
Publisher: Mukti Prakashan

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Page 261
________________ जैन श्रमण : स्वस्प और समीक्षा एक तथ्य और है कि जिनका सुधार श्रावकों को करना है। ----- जब भ्रमण की मृत्यु होती है तो उस शरीर को चार-चार छह घण्टे किं वा चौबीस घण्टे तक रखा जाता है जिन्हें तार दिये गये हैं, या आने वाले श्रावक किं वा संघ जब तक दौड़ न आवे, तब तक शरीर का अग्नि संस्कार नहीं होता---- पालकी आदि ठाट वाट न हो जाए तब तक उसको सुरक्षित रखा जाता है--- 260 यह किस सूत्र के किस अधिकार में आदेश है ? जिसके पालनार्थ ऐसा करना पडता है। जीवात्मा के देह से छूट जाने पर अन्तर्मुहुर्त में सम्मूर्च्छन जीव उत्पन्न होते हैं। अतः मृत्यु के तत्काल बाद अग्नि संस्कार देना चाहिए। 293 उपर्युक्त सम्मेलन का सारांश देखते हुए लगता है कि श्वे. श्रमणों का उक्त सम्मेलन जिसमें आचार्य सोहनलाल जी महाराज की विशेष सक्रियता थी। इसमें काफी खुलकर सभी विषयों पर चर्चा हुयी थी, जबकि दिगम्बरों का श्रवणबेलगोला में आयोजित सम्मेलन काफी संकीर्ण विचारधारा लिये था । उक्त दोनों सम्मेलनों को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व श्वे. स्था. श्रमण कुछ प्रबुद्ध थे, उसका अपनी समाज में काफी प्रभाव भी पड़ा था। तथा सम्मेलन से समाज में काफी जागृति आयी । दुर्लभ जी इस बात पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि "यदि साधु सम्मेलन ( श्वे. स्थान. ) नहीं हुआ होता, तो साधु समाज में इतनी जागृति नहीं मिलती। साधु समाज की स्थिति आज से कहीं ज्यादा बदतर मिलती। यह साधु सम्मेलन की ही कृपा का फल है। 294 हमारे साधु समाज को व्यवस्थित रूप में पाते हैं "समाज एकलविहारियों स्वच्छन्दाचारियों से नफरत करता है । सम्मेलन से पहिले समाज में यह चीज नहीं थी । आज अच्छे से अच्छा एकलविहारी अच्छे शहर या नगर में जाते घबराता है। और यदि नया आदमी पूँछ ले कि, महाराज कितने ठाड़ों से पधारे तो फिर देखो उनका चेहरा ।" परन्तु आज दुर्लभजी जैसा व्यक्तित्व श्वे. सम्प्रदाय में दुर्लभ हो गया है, उनकी क्रान्ति अब कान्तिहीन हो गयी है और उनका अपने सम्प्रदाय के साधु में भ्रष्टाचार के विरुद्ध किया प्रयास प्रभावहीन हो चुका है। इस समय यदि कुछ श्वेताम्बरी साधु में आगत भ्रष्टाचार पर थोडा भी गम्भीरता से विचारा जावे तो शायद मानव जाति की व्यवस्थापित नैतिकताएं ही काँप जावेगी । श्वे. श्रमण संघ के एक साधु विनय मुनि "भीम" जिन्हें "युवा हृदय सम्राट" भी कहा जाता है। इनको मनु टाइम्स के सम्पादक श्री मदन मोदी ने बीडी पीते देखा है,295 ये स्व. मधुकर मुनि के शिष्य हैं। इसी तरह की प्रवृत्ति श्रमण संघ के सरलहदय आचार्य श्री आनन्द ऋषि के अधिकांश शिष्यों में देखने को मिलती है । उपाध्याय पद से अलंकृत श्वे. केवल मुनि तो व्यसनों के अनुभवी पारगामी हैं। इनके द्वारा किया संवत् 2012 में कोटा कांड जग प्रसिद्ध है । विनयमुनि का उज्जैन के चातुर्मास में किया गया कांड जग जाहिर है । महाराष्ट्र के अनकाई करबे में श्वे. हंसमुख मुनि

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