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सदोष श्रमण
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मंत्र-तंत्र और ज्योतिष के टोने-टोटके कर लेते हैं। वे तीन युवतियों के साथ वहाँ विगत पाँच वर्षों से जमे हुए हैं। इसी प्रकार पुष्कर मुनि का बैंगलोर कांड, दिनेश मुनि का पूना कांड, राजेन्द्र मुनि का नीमच के एक कॉलेज में परीक्षा भवन में नकल करते पकड़े जाना, जोधपुर में श्वे. मुनि वेशधारी लालचन्द के कृत्य श्री हस्तीमल महाराज सा. के श्रमण संघ छोडने का निमित्त बनी।
ये सब प्रकरण श्वे. श्रमण संस्कृति के गौरव पूर्ण अध्यायों के कलंकित पृष्ठ हैं। निरन्तर लिखे जा रहे कलंकित पृष्ठों को बचाना है, तो शुद्ध साध्वाचार पालन करने वाले जीवन्त चेतनाशील लोगों को इस पर गम्भीरता से विचारना चाहिए। इससे पूर्व कि शिथिलाचारी वेशधारी का समूह, पूरी संस्कृति को निगल जावे, हमें इसका मुकाबला करना होगा। इनको चिन्तन के चौराहे पर खड़ा करके सही साध्वाचार समझाना होगा।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एकलविहार नफरत की दृष्टि से देखा जाता रहा, परन्तु वर्तमानकालीन दिगम्बर सम्प्रदाय में एकलविहार अधिक प्रतिष्ठित एवं पूज्यनीक हो रहा है। जिस बात को सब लोग बुरा मानते हैं उसे सज्जन लोग तो बुरा स्वीकारते ही है, परन्तु आज की स्थिति ठीक इसके विपरीत ही है। आज दिगम्बर जैन समाज की मानसिकता यह है कि यदि कोई भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाता है, तो उसे मुनि द्रोह करार दिया जाता है। मुनि भक्त ही मुनि-धर्म को भ्रष्ट कर रहे हैं। प्रदर्शन के इस युग में मुनियों व उनके भक्तों ने एक अजीब सामंजस्य स्थापित कर लिया। मुनिवर्ग यह देखता है कि हमें कौन-कौन नमस्कार कर रहा है। सेठों/नेताओं द्वारा नमस्कार करने पर तो इनका हृदय वल्लियों उछलता है। प्रतिष्ठित लोगों के द्वारा नमस्कार करते समय के फोटो खिचाने को तत्पर रहते हैं (देखें फोटो ); दूसरी तरफ सेठों/नेताओं को भी, साधु को नमस्कारादि करते समय के फोटो खिचवाना आवश्यक समझते हैं, ताकि मुनि भक्ति का प्रमाण पत्र लेकर समाज में प्रतिष्ठित हो सकें। आज मुनिभक्ति की उतनी आवश्यकता नहीं, जितनी कि उसके प्रमाणपत्र की, वस्तुतः आज प्रमाणपत्र धारी मुनि भक्त ही इस श्रेष्ठ स्वरूप को बिगाड़ने के जिम्मेवार है।
निर्भीक व्यक्तित्व के धनी पण्डित श्री कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्त-शास्त्री, बनारस लिखते हैं कि -
"जैन धर्म में अन्धा श्रद्धा को स्थान नहीं है। विवेक मूलक श्रद्धा ही सच्ची श्रद्धा है। अन्धश्रद्धा ही दिगम्बर मुनि-मार्ग को बिगाड़ रही है। साधुओं की पीठी से आशीर्वाद प्राप्त करके धनी बनने की भावना रखने वाले ही गुण-दोष का विचार किये बिना मात्र शरीर से नग्नता को ही पूज्य मानते हैं। और अन्ध मुनि भक्त हैं कि मुनि मार्ग बढ़ रहा है यह सोचते हैं। आगे व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि-"आज तो मुनियों के परिग्रह परिमाण की भी