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आहार चर्या
उद्गम और उत्पादन के सोलह-सोलह के भेद से बत्तीस दोषों में गृहस्थाश्रित 16 दोषों में आहार के उद्गम / औद्देशिक आदि दोष विशेष ध्यान देने योग्य है। वस्तुतः ये दोष होते तो हैं भ्रमण के, परन्तु वे दोष गृहस्थ के आश्रित होते हैं। जैन साधु उद्दिष्ट भोजन के त्यागी अर्थात् अनुदिष्ट भोजी होते हैं। वे अपने लिए बनाये गये भोजन के मन वचन काय एवं कृत कारित अनुमोदना में नवकोटि से त्यागी होते हैं। इस उद्दिष्ट भोजन का त्याग दिगम्बर श्वेताम्बर मान्यताओं में लगभग समान रूप से पाया जाता है। 203 परन्तु फिर भी वर्तमान काल के उभय सम्प्रदाय में अधिकांश उद्दिष्ट भोजी ही हैं, यहाँ तक कि दिगम्बर सम्प्रदाय में बहुत से प्रसिद्ध संघ अपने साथ स्वतंत्र भोजन व्यवस्था लेकर भी चलते हैं। जिनमें स्थित कुछ नौकर तथा महिलाएं ही उन साधुओं को इच्छानुसार आहार बनाती है, इस प्रकार साधु संघ में अत्यन्त अनाचार व्याप्त है ।
जैन समाज का कोई भी वर्ग क्यों न हो चाहे समाज का आम वर्ग या विद्वत् वर्ग हो अथवा तथाकथित जैन श्रमण स्वयं भी क्यों न हो "सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से यह नहीं कह सकता कि उद्दिष्ट आहार लिया जा सकता है, उद्दिष्ट स्थानों में रहा जा सकता है। परन्तु शताधिक वर्षों से यह मानसिक परिवर्तन अवश्य हो गया है कि "अभी दुष्शम काल है, पांचमा आरा है कलिकाल है, इस समय साधु के कठोर नियमों को नहीं निभाया जा सकता है, इस धारणा ने साधु संघ को शिथिलता की ओर मोड दिया है। 204
ग्रहणेषणा विषयक दोष
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एषणा अर्थात् अशन के दस दोष होते हैं जो कि क्रमशः निम्न हैं:1. शंकित दोष
2. भ्रक्षित दोष
3. निक्षिप्तदोष
4. पिहित दोष
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अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य-ये चार प्रकार के आहार हैं। इनके विषय में, चित्त या आगम से ऐसा सन्देह कि यह योग्य है या अयोग्य ? ऐसा सन्देह रखते हुए फिर उसी आहार को ग्रहण करना शंकित दोष है ।
चिकनाईयुक्त हाथ, बर्तन या कलछी - चम्मच से दिया गया भोजन भ्रक्षित दोषयुक्त है। इसमें सम्मूर्च्छन आदि सूक्ष्म जीवों की विराधना का दोष देखा जाता है ।
सचित्त पृथ्वी, जल, अग्नि और वनस्पति तथा बीज और त्रस जीव • उनके ऊपर जो आहार रखा हुआ है वह छह भेद रूप निक्षिप्त होता है। तथा अंकुरित गेहूँ आदि धान्य जीवों की उत्पत्ति के योग्य स्थान है, योनिभूत है, इसलिये सचित्त है ।
जो सचित्त वस्तु से ढका हुआ है अथवा जो अचित्त भारी ढका हुआ है उसे हटाकर जो भोजन देता है वह पिहित है।
5. संव्यवहार दोष- दान के निमित्त वस्त्र या बर्तन आदि को जल्दी से खींचकर बिना देखे जो भोजन आदि मुनि को दिया जाता है और यदि वे वह
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वस्तु