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विश्राम चर्या
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अधिक भी रहते हैं। परिस्थितिवश इस काल में हानि- वृद्धि भी होती है। जैन श्रमण अनियतविहारी और अतिथि कहलाते हैं। अर्थात् उनकी कहीं भी जाने की तिथि निश्चित नहीं होती है। परन्तु आज तो एक- दो महीने तक के कार्यक्रम छपकर प्रचारित होते हैं, नारियल देकर चातुर्मास निश्चित कराकर छपवा कर प्रसारित किया जाता है। यह एक जगह एवं तिथि के प्रतिबन्धन हैं। जैन श्रमण किसी के प्रति उत्तरदायी एवं बंधे हुए नहीं होते हैं। जो नारियल स्वीकृत करते हैं। वह जैनधर्म के परिप्रेक्ष्य में उचित नहीं है। चातुर्मास के लिए नारियल भेंट करने की प्रथा समाज द्वारा सम्भवतः इसलिए प्रचलित हुयी होगी; ताकि साधु उस समाज की सामूहिक भक्ति एवं 4 महीने तक संघ के भार वहन की क्षमता से परिचित होकर अमुक शहर/गाँव में अपना मानसिक निर्णय कर सकें। परन्तु उस निर्णय को उद्घोपित नहीं करते हैं, क्योंकि इससे उनका सत्यमहाव्रत एवं अनियत-विहार संकट में पड़ जाता है। सत्यमहाव्रती होने से किसी को गमनागमन का वचन नहीं देते हैं। श्रमण की ऐसी उत्कृष्ट तपोमय विहार व विश्राम चर्या होती है।
वसतिका के छयालीस दोष :उद्गम के दोष -
वसतिका के उद्गम से सम्बन्धित दश दोष इस प्रकार से हैं। वृक्ष काटना, काटकर लाना, ईंटे पकाना, जमीन खोदना, पत्थर बालू वगैरह से गढ्ढा भरना, जमीन कूटना, कीचड़ करना, खम्भे खड़े करना, अग्नि से लोहे को तपाकर पीटना, आरा से लकडी चीरना, विसोले से छानना, कुल्हाड़ी से काटना, इत्यादि कार्यों से छह काय के जीवों को बाधा देकर जो वसतिका स्वयं बनायी हो अथवा दूसरों से बनवायी हो वह वसतिका अधःकर्म के दोष से युक्त होती है। जितने दीन, अनाथ कृपण अथवा साधु आयेंगे, अथवा निर्गन्थ मुनि आयेंगे अथवा अन्य तापसी आयेंगे, उन सब के लिए यह वसतिका होगी, इस उद्देश्य से बनायी गयी वसतिका उद्देशिक दोष से युक्त होती है। अपने लिए घर बनवाते समय "यह कोठरी साधुओं के लिए होगी" ऐसा मन में विचारकर बनवायी गयी वसतिका अब्भोब्भव दोष से युक्त होती है। अपने घर के लिए लाये गये बहुत काष्ठादि में श्रमणों के लिये लाये हुए काष्ठादि मिलाकर बनवायी गयी वसतिका पूतिका दोष से युक्त होती है। अन्य साधु अथवा गृहस्थों के लिए घर बनवाना आरम्भ करने पर पीछे साधुओं के उद्देश्य से ही काष्ठा आदिका मिश्रण करके बनवायी गयी वसतिका मिश्र दोष से दूषित होती है। अपने लिए बनवाये हुए घर को पीछे संयतों के लिए दे देने से वह घर स्थापित दोष से दूषित होता है। मुनि इतने दिनों में आयेंगे जिस दिन वे आयेंगे उस दिन सब घर को लीप पोतकर स्वच्छ करेंगे ऐसा मन में संकल्प करके जिस दिन मुनि का गमन हो उसी दिन वसतिका को साफ करना पाहुडिग दोष है। मुनि के आगमन से पहले संस्कारित वसतिका प्रादुष्कृत दोष से दूषित होती है। जिस घर में बहुत अंधेरा हो मुनियों के लिए प्रकाश लाने के निमित्त से उसकी दीवार में छेद करना, लकड़ी का पटिया हटाना, उसमें दीपक जलाना,