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जैन श्रमण : स्वरुप और समीक्षा
यह पादुकार दोष है। खरीदे हुए घर के दो भेद हैं-द्रव्यकीत और भावक्रीम। गाय बैल, वगैरह सचित्त पदार्थ लेकर अथवा गुड़ खांड वगैरह अचित्त पदार्थ देकर खरीदा हुआ मकान द्रव्यक्रीत है। विद्या मंत्र वगैरह देकर खरीदा हुआ मकान भावक्रीत है। बिना ब्याज पर अथवा ब्याज पर थोड़ा सा कर्जा करके मुनियों के लिए खरीदा हुआ मकान पामिच्छ दोष से दूषित होता है। आप मेरे घर में रहें और अपना घर मुनियों के लिए दे दें, इस प्रकार से लिया हुआ मकान परिवर्त दोष से दूषित होता है। अपने घर की दीवार के लिए जो स्तम्भ आदि तैयार किये हों, वह संयतों के लिए लाना अभ्याहत नामक दोष है। इस दोष के दो भेद हैं-आचरित और अनाचरित। जो सामग्री दूर देश से अथवा अन्य ग्राम से लायी गयी हो उसको अनाचरित कहते हैं और जो ऐसी नहीं हो उसे आचरित कहते हैं। ईंट, मिट्टी, बाड़ा, किवाड़ अथवा पत्थर से ढका हुआ घर खोलकर मुनियों के लिए देना उदिभन्न दोष है। नसैनी वगैरह से चढ़कर "आप यहाँ आइये, यह वसतिका आपके लिए है" ऐसा कहकर संयतों को दूसरी अथवा तीसरी मंजिल रहने के लिए देना मालारोह नामक दोष है। राजा मंत्री वगैरह का भय दिखाकर दूसरे कामकान वगैरह मुनियों के लिए दिलाना अछेद्य नामक दोष है। अनिसृष्ट दोष के दो भेद हैं-जिसे देने का अधिकार नहीं है ऐसे गृहस्वामी के द्वारा जो वसतिका दी जाती है वह अनिसृष्ट दोष से दूषित है।
उत्पादन के दोष
जैसे धाय के पाँच काम होते हैं। कोई धाय बालक को स्नान कराती है, कोई आभूषण पहनाती है, कोई उसका मन खेल से प्रसन्न करती है, कोई उसको भोजन कराती है, और कोई उसको सुलाती है। वैसे ही इन धात्री कर्मों में से किसी काम का गृहस्थ को उपदेश देकर उससे वसतिका प्राप्त करना धात्री दोष है। अन्य ग्राम, अन्य नगर, देश, देशान्तर के समाचार कहकर प्राप्त की गई वसतिका दूतकर्म दोष से दूषित है। अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न, भौम,स्वप्न और अन्तरिक्ष ये आठ महानिमित्त हैं। इन आठ महानिमित्तों के द्वारा शुभाशुभ फल बतलाकर प्राप्त की गयी वसतिका निमित्त दोष से दूषित है। अपनी जाति, कुल ऐश्वर्य, वगैरह का माहात्म्य बतलाकर प्राप्त की गयी वसतिका आजीवक दोष से दृषित है। भगवान, सब को आहार दान देने से और वसतिका के दान से क्या महान पुण्य की प्राप्ति नहीं होती? ऐसा श्रावक का प्रश्न सुनकर श्रावक के अनुकूल उत्तर देकर वसतिका प्राप्त करना बनीपक दोष है। आठ प्रकार की चिकित्सा करके वसतिका प्राप्त करना चिकित्सा दोष है। क्रोध आदि से प्राप्त की गई वसतिका क्रोधाधुत्पादि दोष से दूषित है। "आने-जाने वाले मुनियों को आपका ही घर आश्रय है" ऐसी स्तुति करके प्राप्त की गई वसतिका पूर्वस्तुति नामक दोष से दूषित है। वसतिका छोड़ते समय "आगे भी कभी स्थान मिल सके" इस हेतु से गृहस्थ की स्तुति करना पश्चात् स्तुति नामक दोष है। विद्या मंत्र वगैरह के प्रयोग से गृहस्थ को वश में करके वसतिका प्राप्त करना विद्यादि दोष है। भिन्न जाति की कन्या के साथ सम्बन्ध मिलाकर वसतिका प्राप्त करना अथवा विरक्तों को अनुरक्त करके उनसे वसतिका प्राप्त करना मूलकर्म दोष है। इस प्रकार ये सोलह उत्पादन