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आहार चर्या
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कल्पसूत्र संस्कृत टीका पृ. 177 में
"यद्यपि मधुमद्यमांसवर्जनंयावज्जीवं अस्त्येव तथा अत्यन्तापवादःदशायां बाह्यपरिभोगाद्यर्थ कदाचिद् ग्रहणेऽपि चतुर्मास्यां सर्वथा निषेधः" इसकी गुजराती टीका186 जिसका अनुवाद है-मधु ( शहद) मांस और मक्खन जो कि साधुओं को आजन्म त्याग करने योग्य है, फिर भी अत्यन्त अपवाद की दशा में शरीर के बाहरी उपयोग के लिए किसी समय ग्रहण करना हो तो करे वरना चातुर्मास में तो उनका निषेध ही है।
आचारांग सत्र में187
संति-तत्थेगतियस्स भिक्खुस्स पुरे संधुया वा पच्छा संधुया वा परिवसंति, तेलं वां महुं वा, मज्जं वा मांस वा पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहेरेज्जा।
इसकी गुजराती टीका निम्नतः है
"कोई गाममां मुनिना पूर्व परिचित तथा पश्चात्परिचित सगाववाला रहेताहोय, जेवा के गृहस्थो, गृहस्थ बानुओ, गृहस्थ पुत्रो, गृहस्थ पुत्रिओ, गृहस्थ पुत्रबधुओ, दाइओ, दास, दासीओ, अने चाकरो के चाकरडीओ, तेवा गाममा जतां जो ते मुनि एवो विचार करे कि हुँ एक बार वधथी पहेला मारा सगाओमां भिक्षार्थे जइश, अने त्यां मने, अन्न, पान, दूध, दहि, माखण, घी, तेल, मधु, मद्य, मांस, तिलपापडी, गोल कुलंपाणी, बुंदी के श्रीखंड मलशे। ते हूं सर्वश्री पहेला खाई पात्रो साफ करी पछी बीजा मुनिआ साथे गृहस्थना घरे भिक्षा लेवा जइश, तो ते मुनि दोषपात्र थाय के माटे मुनिए एम नहिं करवू, किंतु बीजा मुनिओ साथे बखतसर जुदा जुदा कुलोमां भिक्षा निमित्ते जई करी भागमा मले लो निर्दूषण आहार लई वापरवो।
ऊपर के उद्धरण का भाव है कि मुनि किसी गाँव में जिसमें उसके किसी सम्बन्धी आदि का घर हो, जाते समय यदि ऐसा विचार करे कि मैं इस बार सबसे पहले अपने सगे सम्बन्धियों में भिक्षा के लिए जाऊँगा, और वहाँ मुझे अन्नपान, दूध दही, मक्खन, घी, गुण, तेल, मधु, मद्य, माँस आदि मिलेगा उसे मैं सबसे पहले खाकर अपने पात्र साफ करके पश्चात् फिर अन्य मुनियों के साथ गृहस्थ के घर भिक्षा लेने जाऊँगा, यदि ऐसा वह मुनि करता है तो वह दोषी है। इसलिए मुनियों को ऐसा नहीं करना चाहिए।किन्तु और मुनियों के साथ समय पर अलग-अलग कुलों में भिक्षा के लिए जाकर मिला हुआ निर्दूषण आहार लेना चाहिए।"
यहाँ पर निर्दूषण शब्द मूलसूत्र में नहीं है अपितु गुजराती टीकाकार का है। एवं टीकाकार ने कहीं मधु, मांस, मदिरा आदि अभक्ष्य, निंद्यपदार्थों के खाने का निषेध भी नहीं किया है। इसके अतिरिक्त इसी ग्रन्थ के 175 पृष्ठपर मधुमांस के सम्बन्ध में यह भी लिखा है कि "बखते कोई अतिप्रमादादि गृद्ध होवाथी मद्यमांस पण खाना चाहे माटे ते लीधा