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दिगम्बर सम्प्रदाय और उसके भेद
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संरक्षण प्राप्त किया। किन्तु इसमें यह उल्लेखनीय तथ्य है कि कर्नाटक के एकदम दक्षिणी भाग में जिसमें मैसूर भी सम्मिलित है, शिलालेखों में याफ्नीयों का उल्लेख बहुत कम है, श्रवणवेलगोला के लेखों में एक भी यापनीय संघ का उल्लेख स्पष्ट रूप में नहीं मिलता है। विगत अन्वेषणों के फलस्वरूप ज्ञात होता है कि हन्निकेरी, कलभावी सौदत्ति, वेलगाँव, बीजापुर, धारवाड, कोल्हापुर क्षेत्रों के कुछ स्थानों में यापनीयों का जोर था 38। कदम्ब, चालुक्य, गंग, राष्ट्रकूट और रट्टवंश के राजाओं ने इस संघ को और इसके साधुओं को अनेकों भूमिदान किये थे।
इस संघ के कतिपय गणों के सम्बन्ध में लेखों के तिथि क्रम के अध्ययन करने पर मालुम होता है कि वे पीछे दिगम्बर सम्प्रदाय के अन्य दूसरे संघों द्वारा आत्मसात कर लिये गये, या उनका पुनः संस्कार किया गया, या वे काल के थपेड़े में लुप्त हो गये। लेखों के विश्लेषण से यह बात स्पष्ट होती है139 |
यापनीय संघ के अन्तर्गत नन्दि संघ एक महत्वपूर्ण शाखा थी। उसकी एक प्रसिद्ध शाखा पुन्नाग वृक्ष मूलगण थी। शिलालेखों में निर्दिष्ट बहुत से साधु इसी गण से सम्बद्ध थे। इसके सिवाय भी यापनीयों के अनेक गण थे। दो एक लेखों में (जै.शि.सं. भाग 4, नं.70, 131) कुमुदि गण का उल्लेख मिलता है। इनमें से प्रथम लेख नवमीं शताब्दी का है
और दूसरा 1045 ई. का है। दोनों में जिनालय निर्माण का उल्लेख है। हलि (जि. वेलगाँव) में (वही नं. 207, 268, 386) जो 12 वीं 13 वीं सदी के हैं-कडूरगण का उल्लेख है। सेदम से प्राप्त लेख में मडूवगण, सौदी, तेंगाली और मनौली के लेखों में वन्दिमूरगण तथा बदली हन्निकेरी, सौन्दत्ति के लेखों में कारेयगण और मैलाव अन्वय का उल्लेख है। यापनीयों के साथ गच्छ का निर्देश नहीं मिलता है। यद्यपि आन्ध्र से प्राप्त एक लेख में नन्दि संघ का उल्लेख नन्दिगच्छ के रूप में प्राप्त है। मलियपुण्डि दान पत्र के अनुसार धर्मपुरी गाँव में कटकराज दुर्गराज की ओर से एक जिनालय का निर्माण कराया गया था। आन्ध्र प्रदेश में यापनीय संघ के अस्तित्व को बतलाने वाला यही लेख अभी तक प्राप्त हुआ है1401 द्राविड़ संघ
द्रविड देश में रहने वाले जैन श्रमण समुदाय का नाम द्राविड़ संघ है। इनका उल्लेख द्रमिड़, द्रविड़, दविड़, द्राविड़, दविल, दरविल, यातिवुल नाम से उल्लिखित किया है। नामगत ये भेद लेखक या उत्कीर्णक के कारण हुए प्रतीत होते हैं। द्रविड़ देश वास्तव में वर्तमान आन्ध्र और मद्रास प्रान्त का कुछ हिस्सा है। जिसे सुविधा की दृष्टि से तामिल देश भी कह सकते हैं। देवसेनाचार्य ने अपने दर्शनसार में अन्य संघों की उत्पत्ति के वर्णन में द्राविड़ संघ के सम्बन्ध में लिखा है कि पूज्यपाद के शिष्य वज्रनन्दि ने वि.सं. 526 में दक्षिण मथुरा (मदुरा) में द्राविड़ संघ की स्थापना की। इस संघ को वहाँ जैनाभासों में