________________
सन्दर्भ सूची
80
101. IBID, P. 681 102. SSIJ., Pt. I. P. 47 103. IBID P. 55 104. Sc. P. 247. 105. I HQ, VOL. IV. P. 564. 106. श्रमण महावीर-पृ. 107, ले. मुनि नथमल 107. वही पृ. 108-109 108. जैन आचार पृ. 153, ले. मोहन लाल मेहता. 109. कल्याण मुनि और सम्राट सिकन्दर, पृ. 13-14. 110. स्थानांग सूत्र, नवम स्थान, पृ. 683, (ब्यावर प्रकाशन) 111. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोप भाग 1, पृ. 313 112. तिलोयपण्णति गा. 1481, 1484 113. तिलोयपणणति गा. 1002 से 1016 114. राजवार्तिक 3/36/3/202/21, एतेषु महानिमित्तेषु कौशलमष्टांग
महानिमित्तज्ञता"। 115. दर्शनसार गा. 11-14. 116. भाव संग्रह-गा. 53-72 117. जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास पृ. 43 ले. भागचन्द्र भास्कर। 118. विशेषावश्यक भाष्य गा. 230-32; राजवार्तिक-6/10/2 में ज्ञान का अपलाप
करने को "निन्हव" कहा गया है। 119. विशेषावश्यक भाष्य गा. 3233-3255 120. विशेषावश्यक भाप्य गा. 3356-3388 121. जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास पृ. 41, ले. डा. भागचन्द्र भास्कर नागपुर 122. श्वेताम्बर मत समीक्षा प. 270 123. जैन मित्र 10 वाँ वर्ष, 19-20 वाँ अंक के लेख का सार 124. इण्डियन रोन्टिकेरी, पु.नं. 30, "भारत में धार्मिक इतिहास"-लेख 125. श्वेताम्बर मत समीक्षा - पृ. 273 126. वही पृ. 274 127. जै. शि. सं. भाग 1, लेख सं. 102 के आधार पर अकलंक "देवसंघ" के
प्रतिष्ठापक थे। 128. . शि. सं. भाग 2, लेख सं. 239 129. श्रमणों के द्वारा गाँव, जमीन आदि लेने की पुष्टि में निम्न शिलालेख देखे जा सकते
हैं-लेख सं. 127, 95 जै. शि. सं. भाग 2 130. जै. शि. सं. भाग 2, लेख सं. 180 (दोड्ड-कणगलु में, गौण के खेत में एक
पापाण पर)