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तृतीय अध्याय जैन श्रमण की आचार संहिता
जैन श्रमण की आचार संहिता के इस अध्याय में 28 मूलगुणों से विभूषित एवं उनको निरतिचार पालन करने वाले श्रमण की एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति किस प्रकार की होती है। इस प्रकार की "अहोरात्र" चर्या इस अध्याय का विषय बनेगी।
आचार्य वट्टकेर कृत मूलाचार में "श्रमण" की इस जीवन पद्धति को समाचार अधिकार में वर्णित किया है।
समता, समाचार, सम्यक् आचार अथवा सम आचार या सभी का समान आचार ये समाचार शब्द के अर्थ हैं।' मूलाचार गा. 123 की आचारवृत्ति टीका में चार प्रकार के अर्थों से समाचार शब्द की निरुक्ति की है।
1. समता समाचार
सम का भाव समता है। रागद्वेष का अभाव होना समता समाचार है। अथवा त्रिकाल देववन्दना करना या पंचनमस्कार रूप परिणाम होना समता है, अथवा सामायिक व्रत को समता कहते हैं। ये सब समता समाचार है।
2. सम्यक् आचार
सम्यक् शोभन रूप निरतिचार मूलगुणों का अनुष्ठान अर्थात् आचरण अर्थात् निरतिचार मूलगुणों को पालना यह सम्यक् आचार रूप समाचार है, अथवा सम्यक् आचरण-ज्ञान अथवा निर्दोष भिक्षा ग्रहण करना यह समाचार है। चर् धातु भक्षण करना और गमन करना इन दो अर्थों में मानी गयी है, एवं गमनार्थक सभी धातुएं ज्ञानार्थक भी होती हैं। इस नियम से चर् धातु का एक बार ज्ञान अर्थ करना तब "समीचीन जानना" अर्थ विवक्षित हुआः एवं एक बार "भक्षण अर्थ" करने पर "निर्दोष आहार" अर्थ लेना विवक्षित है। अतः समीचीन ज्ञान और निर्दोष आहार ग्रहण को भी सम्यक् आचार स्प "समाचार" कहा है।