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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
गिनाया गया है और वज्रनन्दि के सम्बन्ध में लिखा है कि उस दुष्ट ने कछार, खेत, वसदि और वाणिज्य से आजीविका निर्वाह करते हुए शीतल जल से स्थान करते हुए प्रचुर पाप अर्जित किया 47। इस कथन की सत्यता पर गम्भीरता से विचारते हुए तथा इस संघ के प्रतिष्ठित कई आचार्यों को ध्यान में रखते हुए यह विचार किया जा सकता है कि यह हो सकता है कि द्रविड़ प्रदेश के आधार पर नामकरण किये गये। इस संघ में पहल काई शिथिल एवं अतिभ्रष्ट प्रवृत्ति वाला रहा होगा, जिससे एक पूर्ण परम्परा ही चल पड़ी, परन्तु उस संघ में कई प्रतिष्ठित और विद्वान आचार्य हुए जिनका जीवन चरित वैसा न रहा हो, लेकिन मोटे तौर पर पूरा संघ समुदाय ही बदनाम रहा। अतः देवसेन ने उस सम्पूर्ण परम्परा को ही जैनाभास कह डाला हो।
इस संघ के लगभग सभी लेख 10-11 वीं सदी के पश्चातवर्ती हैं। इससे पूर्व सम्भवतः कोई भी उल्लेख अप्राप्त है। इस संघ के प्रायः सभी लेख कोडाल्व वंशी, तथा होय्सलवंशी राजाओं के राज्यकाल के हैं जिससे विदित होता है कि उन वंशों के इस संघ को राज्य संरक्षण प्राप्त था। अधिकांश लेख होय्सल नरेशों के हैं। इन संघ के आचार्यों ने पद्मावती देवी की पूजा एवं प्रतिष्ठा के प्रसार में काफी योगदान दिया।
इस संघ के द्राविड़ संघ कौण्डकुन्दान्वय142 तथा अन्य143 लेख में मूलसंघ द्रविड़ान्वय लिखा है। इन निर्देशों से ज्ञात होता है कि प्रारम्भ में नव संगठित द्राविड संघ ने अपना आधार या तो मूलसंघ को या कुन्दकुन्दान्वय को बनाया होगा, पर पीछे यापनीय सम्प्रदाय के विशेष प्रभावशाली नन्दिसंघ में इस सम्प्रदाय ने अपना व्यावहारिक रूप पाने के लिए उससे विशेष सम्बन्ध रखा या द्रविड गण के रूप में उक्त संघ के अन्तर्गत हो गया। पीछे यह द्रविड गण इतना प्रभावशाली हुआ कि उसे ही संघ का रूप दे दिया गया।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय और उसके भेद -
श्वेताम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति एक विकास का परिणाम है। कुछ समय तक श्वेताम्बर साधु अपवाद के स्प में ही कटिवस्त्र धारण किया करते थे। पर बाद में लगभग आठवीं शती में उन्होंने उन्हें पूर्णतः स्वीकार कर लिया। साधारणतः उनके पास 14 उपकरण होते हैं। महावीर निर्वाण के लगभग 1000 वर्ष बाद देवर्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने अपने ग्रन्थों का संकलन श्रुति परम्परा के आधार पर किया, जिन्हें दिगम्बरों ने स्वीकार नहीं किया। इसका मूल कारण था कि वहाँ कतिपय प्रकरणों को काट-छाँट कर और तोड़-मरोड़ कर उपस्थित किया गया था। कालान्तर में श्वेताम्बर संघ में निम्नलिखित प्रधान सम्प्रदाय उत्पन्न हुए।