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संघ और सम्प्रदाय दन्दिगे यडलवीयेला कलांक यलं इल्द युललु सलगु।
अर्थ.
समस्त लक्ष्मी और सरस्वती का निवास स्थान और समस्त सामन्तों द्वारा नमस्कृत श्रीभद्रबाहु और चन्द्रगुप्त महामुनि के चरणों से मंडित कटवप्र पर्वत सदा विजयशील रहे।
शिलालेख नं. 258, शक संवत लगभग 1355 सिद्भरवस्ती में दक्षिण की ओर एक स्तम्भ पर ( प्रथम मुख)
तदन्वये शुद्धिमति प्रतीते समग्रशीलामलरत्नजाले। अभूधतीन्द्रो भुवि भद्रबाहुः पयः पयोधाविव पूर्णचन्द्रः ।।6 ।।
भद्रबाहुराग्रिमः सभग्रबुद्धिसम्पदा
शुद्धसिद्धशासनं सुशब्द-बन्ध-सुन्दरं इद्धवृतसिद्धिरत्र बद्धकमितपो -
वृद्धि वर्द्धित प्रकीर्तिरुद्धधे महर्टिकः ।। 17।। यो भद्रबाहुः श्रुतकेवलीनां मुनीश्वराणामिह पश्चिमोऽपि ।' अपश्चिमोअभूद्विदुषां विनेता सर्वश्रुतार्थप्रतिपादनेन ।। 8 ।।
तदीय शिष्योअजनि चन्द्रगुप्तः समग्रशीलानतदेववृद्धः ।
विवेश यतीव्रतपः प्रभाव-प्रभूत-कीर्तिर्भुवनान्तराणि ।।७।। भावार्थ__जिसमें समस्त शील रूपी रत्नसमूह भरे हुए हैं और जो शुद्ध बुद्धि से प्रख्यात है उस वंश में समुद्र में चन्द्र समान श्रीभद्रबाहु स्वामी हुए। समस्त बुद्धिशालियों में श्री भद्रबाहु स्वामी अग्रेसर थे। शुद्ध सिद्ध शासन और सुन्दर प्रबन्ध से शोभा सहित बढ़ी हुयी है व्रत की सिद्धि जिनकी तथा कर्मनाशक तपस्या से भरी हुयी है कीर्ति जिनकी ऐसे ऋद्धिधारक श्री भद्रबाहु स्वामी थे।
जो भद्रबाहु स्वामी श्रुत केवलियों में अन्तिम थे तथा अखिल शास्त्रों का प्रतिपादन करने से समस्त विद्वानों में प्रथम थे।
जिनके शिष्य चन्द्रगुप्त ने अपने शील से बड़े-बड़े देवों को नम्रीभूत बना दिया था। जिन चन्द्रगुप्त के घोर तपश्चरण के प्रभाव से उनकी कीर्ति समस्त लोकों में व्याप्त हो गयी
__ श्रवणवलगोल में भी अभिलेख सं. 166, शक सं. लगभग 1032 (भद्रबाहु गुफा के भीतर पश्चिम की ओर चट्टान पर ) परन्तु इस समय यह लेख उपलब्ध नहीं।