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श्वेताम्बरीय मान्यता में दिगम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति
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शिवभूति ने रत्नकंवल लेकर श्वेताम्बरीय परम्परा के सिद्धान्त अनुसार अन्याय कौन सा किया था ? क्योंकि महाव्रत धारण करते समय इस परम्परा में तीर्थंकर भी दिव्य, बहुमूल्य, देवदूष्य वस्त्र धारण करते हैं। शिवभूति तो तीर्थंकर की अपेक्षा निम्न कोटि का ही श्रमण था। और जब रत्नकंवल लिया ही था तो उसको दूर क्यों नहीं फेंक दिया। उसके रजोहरण क्यों बनाये? क्या उसके रजोहरण बनने पर बहुमूल्यपना समाप्त हो गया था ? तथा उसमें भी आसक्ति का एक और अन्य माध्यम नहीं था ? और फिर रत्नकंवल के रजोहरण बनवाने की आज्ञा कौन से आगम में वर्णित है ?
जिनकल्पी का स्वरूप सुनकर शिवभूति की नग्नता ने अन्याय कौन सा किया था ? जिससे कि उसे निन्हववाद कहा जाए ? उसने तो विलुप्त नग्न परम्परा को उद्घाटित कर एक नया आदर्श ही उपस्थित किया था जो कि श्वे. आगम में भी श्रद्धेय एवं मान्य है। तथा ऐसा करके शिवभूति ने नया पंथ भी नहीं चलाया था। नवीन पंथ तो वह कहा जाता है जो कभी भी पहले किसी ने भी नहीं चलाया हो।
कल्पित कथा विक्रम संवत् दूसरी शताब्दी (138 वें वर्ष ) में दिगम्बर पंथ की उत्पत्ति कहती है, जबकि प्रसिद्ध दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द विक्रम संवत् 49 में ही हुए हैं। जोकि शिलालेखों आदि से प्रमाणित है। इसी प्रकार समन्तभद्राचार्य आदि नग्न दिगम्बर साधु भी प्रथम शताब्दी में अन्त के ही हैं। तथा यदि दूसरी शताब्दी में दिगम्बर मत पैदा हुआ तो इतने शीघ्र इसको लोकप्रियता कैसे मिल गयी ? जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय के सभी प्रसिद्ध आचार्य 5 वीं सदी के पूर्व के ही हैं, और दूसरी तरफ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के साहित्य का प्रारम्भ ही लगभग 5 वीं सदी के आस-पास शुरू है।
बहुत जैनेतर विदेशी विद्वानों का भी मन्तव्य है कि दिगम्बर सम्प्रदाय प्राचीन है जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय नया। इस सम्बन्ध में श्री सम्मेदशिखर तीर्थक्षेत्र के इंजक्शन केश का फैसला देते हुए रांची कोर्ट के प्रतिभा सम्पन्न सब जज श्रीयुत फणीसचन्द्रलाल जी सेन लिखते हैं कि
"श्वेताम्बरों का कहना है कि दिगम्बर आम्नाय श्वेताम्बरों के पश्चात् हुयी। परन्तु" There is authoritative pronouncement that the Digamber must have ekisted from long before the Swetambari seat was formed.
अर्थात - इस बात के बहुत दृढ़ प्रमाण हैं कि श्वेताम्बरी जैन से बहुत पूर्व दिगम्बर जैन मौजूद थे।