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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
___अर्थात् "दुनियाँ का सम्बन्ध त्याग देना, तर्क कर देना उसकी आशाइशों और पोशाक-सब ही चीजों को अब की और आगे की-पैगम्बर साहब की हदीस के मुताबिक"
इस उपदेश के अनुसार इस्लाम में त्याग और वैराग्य को विशेष स्थान मिला। उसमें ऐसे दरवेश हुए जो दिगम्बरत्व के समर्थक थे और तुर्किस्तान में अब्दुल नामक दरवेश नग्न रहकर अपनी साधना में लीन रहते बतलाये जाते हैं।68
इस्लाम के प्रसिद्ध गफी तत्ववेत्ता और सुप्रसिद्ध "मस्नवी नामक ग्रन्थ के रचयिता श्री जलालुद्दीन रूमी नग्नता का उपदेश इस तरह से देते हैं। 1. गुफत मस्त ऐ महतब व गुजार रव-अज विरहना के तवां बुरदन गरव ( जिल्द-2, पृ.
262) 2. जामा पोशां रा नजर परगाज रास्त-जामै अरियां रा तजल्ली जेवर अस्त (जि. 2,
पृ.282) 3. "याज अरियानान वयकसू बाज रव-या चूं ईशा फारिग व वे जामा शव" वरनमी
तानी कि कुल अरियां शवी-जामा कमकुन ता रह औसत रवी।।" (जि.2, सफा 383)69 इसका उर्दू अनुपाद "इल्हामें मन्जम" नामक पुस्तक में इस प्रकार दिया
1. मस्त बोला, महतब, कर कामजा-होगा क्या नंगे से तू अहदे वर आ। 2. है नजर धोबी पै जाम-पोश की-है तजल्ली जेवर अरियां तनी।। 3. या विरहनों से हो यकसू बाकई-या हो उनकी तरह वेजामै अखी। 4. मतलंकन अरियां जो हो सकता नहीं-कपडे कम यह है औसत के करी।।
यहाँ सारांश है कि कोई तार्किक मस्त नग्न दरवेश से विवाद करने लगा। उसने स्पष्ट कह दिया कि वस्त्र अपनाकर, तू नग्न के सामने ठहर नहीं सकता। वस्त्रधारी को सदैव धोने की चिन्ता लगी रहती है, किन्तु नग्न तन की शोभा दैवी प्रकाश है। बस, या तो तू नग्न साधुओं से उलझा न कर अथवा उनकी तरह आजाद और नग्न हो जाओ। और यदि तू एक साथ वस्त्र उतार नहीं सकता तो न्यूनतम वस्त्र का प्रयोग कर और मध्यम मार्ग को स्वीकार कर।
उपर्युक्त उपदेश में जैन श्रमणों की चर्या का प्रभाव परिलक्षित होता है। उक्त इस्लाम के इस उपदेश के अनुसार सैकड़ों मुस्लिम फकीरों ने नग्न वेश को अतीत काल में धारण किया था उनमें अबुल कासिम गिलानी और सरमद शहीद उल्लेखनीय हैं। वर्तमान काल में भी आज से 11 वर्ष पूर्व कानपुर नगर में प्रसिद्ध फकीर सादिक शाह पंजाब वाले नग्न ही रहते थे, नग्न ही भ्रमण करते थे तथा जिनका इन्तकाल सन् 1976 को महीना 12 वफात 4 ता. दो बजकर 40 मिनट पर हुआ था तथा इफ्तिखाराबाद मुहल्ले की मस्जिद में