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इन तीर्थंकरों ने न केवल भक्ति-काव्य की धारा को प्रवाहित किया, अपितु विश्वकल्याण के लिए अहिंसा, अनेकान्त, (स्याद्वाद), अपरिग्रह, अध्यात्मवाद और मुक्तिवाद जैसे सिद्धान्तों का, सहस्रों देशों में बिहार करते हुए प्रणयन किया, इसी कारण से वे तीर्थकर, तीर्थकर, तीर्थकृत् इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। संस्कृत व्याकरण से निरुक्ति है-धर्मतीर्थं करोतीति तीर्थकरः।।
तृ (प्लवन-तरणयोः) धातु से थक् प्रत्यय करने पर तीर्थ सिद्ध है। जिसके द्वारा या जिसके आधार से संसार-सागर सरा जाए.
इस समय अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर द्वारा प्रसारित भक्ति-काव्य (पूजा-काव्य) आदि सिद्धान्तों की गंगा बह रही है जिसमें सभी मानव स्नान करते
अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात आचार्य-परम्परा 1. गौतम स्वामी
केवलज्ञानी
___ 12 वर्ष 2. सुधर्माचार्य
केवलज्ञानी 12 वर्ष 3. जम्बूस्वामी
केवलज्ञानी
38 वर्ष
योग-62 वर्ष 4. विष्णनन्दी
श्रुतकेयली
14 वर्ष 5. नन्दिमित्र
श्रुतकेवली 16 वर्ष 6. अपराजित
श्रुतकेवली 22 वर्ष 7. गोवर्धन
श्रुतकेवली 19 वर्ष ४. भद्रबाहु
श्रुतकेवली
29 वर्ष
योग-100 वर्ष ७. विशाखाचार्य दशपूर्वज्ञानधारी 10 वर्ष 10. प्रोष्ठिलाचार्य दशपूर्वज्ञानधारी ___19 वर्ष 11. क्षत्रियाचार्य
दशपूर्वज्ञानधारी 17 वर्ष 12. जयसेनाचार्य दशपूर्वज्ञानधारी 13. नागसेन
दशपूर्वज्ञानधारी 18 वर्ष [+, सिद्धार्थ
दशपूर्वज्ञानधारी 17 वर्ष 15. धृतिषेण
दशपूर्वज्ञानधारी 18 वर्ष [6. विजयाचार्य दशपूर्वज्ञानधारी 17. बुद्धिलिंग (बुद्धिल) दशपूर्वज्ञानधारी 20 वर्ष 15. देवाचार्य
दशपूर्वज्ञानधारी 14 वर्ष 19. धर्मसंनाचार्य इशपूर्वज्ञानधारी ___ 14 वर्ष
योग-181 वर्ष
स वर्ष
1१ वा
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:: जैन पजा-काव्य : एक चिन्तन