Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 361
________________ सार सौन्दर्य-जिस गुण के कारण आत्मज्ञानी पुरुषों को आदरपूर्वक शुद्ध उपयोग और अनन्त सुख की प्राप्ति हुई, धर्म का मर्म स्वीकृत हुआ और अन्त में समीचीन मुक्ति का लाभ हुआ, उस सम्यक्चारित्र गुण की हम कुसुमांजलि से पूजा करते हैं। कविवर द्यानतराय कृत सोलह भावना पूजा-काव्य में भक्ति का प्रभाव : एही सोलह भावना सहित धरै व्रत जोय । देव इन्द्र नर वन्द्यपद 'द्यानत' शिवपद होय ॥ पंचमेरु को आरती, पदै सुनै जो कोय । "धानत' फल जानै प्रभू, तुरत महासुख होय || ऋवि वृन्दावनकृत आदिनाथ पूजा-काव्य में उपासना का प्रभाव : यह अरज हमारी, सुन त्रिपुरारी, जनम जरा मृति दूर करो। शिव सम्पति दीजे, टोल न कीजे, निज लख लीजे कृपा धरो ॥ जो ऋषभेश्वर पूजे, मन वच तन भाव शुद्धकर प्राणी । सो पावै निश्चै सों, मुक्ती औ मुक्ति सार सुखथानी ॥' कविवर वृन्दावनकृत चन्द्रप्रभ पूजा-काव्य में उपासना का महत्त्व : जय चन्दजिनन्दा, आनंदकन्दा, भवभयभंजन राजे हैं। रागादिक द्वन्दा, हारे सब फन्दा, मुकतिमाहि थिति साजें है। आठौं दरब मिलाय गाय गुण जो भविजन जिनचन्द जजै । ताके भव भव के अघ भाजै, मुक्तिसार सुख ताहि सजै ॥ जम के त्रास मिटै सब ताके, सकल अमंगल दूर भ6। वृन्दावन ऐसो लखि पूजत, जाते शिवपुरि राज रजै ॥' कविवर मनरंगलाल कृत शीतलनाथ तीर्थकर पूजा-काव्य भक्ति का मूल्यांकन : आपद सब दीजे भार झोंकि यह पढ़त सुनत जयमाल, हे पुनीत! करण अरु जिहा वरते आनन्द जाल ॥ पहुँचे जहँ कय पहुँचे नहिं, नहीं पायी सो पावे हाल, नहीं भयो कमी सा होच सबेरे भाषत मनरंगलाल || भो शीतल भगवान्, तो पद पक्षी जगत् में। हैं जेते परवान, पक्ष रहे तिन पर बनी ॥" 1. ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृ. 1|| 2. नथैच, पृ. 42। ३. तथैव पृ. 3461 4. तथैव पु. पृ. 3551 जैन पूजा-काव्यों का महत्त्व :: 365

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