Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 360
________________ की इस जयमाला को जो पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं अथवा मन में स्मरण करते हैं वे मानव परमपद मुक्ति को प्राप्त करते हैं। कविवर द्यानतराय की पूजा कविता में पूजा का मूल्यांकन : हिन्दी पूजा - काव्यों में पूजा का मूल्यांकन : कीजे शक्तिप्रमान, शक्तिविना सरधा धरे । 'धानत' सरधावान, अजर अमर पद भोगवे ॥ तुमको पूजे वन्दना करे धन्य नर सोय । 'द्यात' सरधा मन धेरै, सो भी धरमी होय || श्री हीराचन्द्र कविकृत पूजा-काव्य में पूजा का मूल्यांकन सिद्ध जजैं तिनको नहिं आवै आपदा पुत्र पौत्र धन धान्य हे सुख सम्पदा । इन्द्र चन्द्र धरणेन्द्र जु होच जावे मुकति मझार करम सब खोयकै ॥ इन्द्रकविकृत परमात्मपूजन में उपासना का महत्त्व : हे प्रभु तेरे चरणों में मैं बारबार सिर नाता हूँ । जिनकी छाया में अपूर्व अपनेपन का सुख पाता हूँ ॥ ३ रड़धूकविकृत समुच्चयदशधमं जयमाला में पुजा काव्य का महत्व : = कोहाल चुक्क होउ गुरुक्कड जाइ रिसिदहिं सिट्ठ जगता सुरु धम्ममहातरु देड़ फलाई सुमि ॥ तात्पर्य-क्रोधानल का त्याग कर महान् सुशील बनो, ऐसा ऋषिवरों ने उपदेश दिया है। शुभ करनेवाला यह इशधर्म पूजा- काव्य रूपी महावृक्ष जगत् के प्राणियों को मीट फल प्रदान करता है I सम्यक्चारित्र गुण के पूजा - काव्य में भक्ति का मूल्यांकन : शुद्धोपयोग उपलब्धमनन्त सौख्यम् सिद्धान्तसार मुररीकृतमात्मविद्भिः । सन्मुक्तिसंवरणमद्भुतमादरेण तद्वृत्तमत्र कुसुमां जलिना धिनोमि ॥" 1. ज्ञानपीठ पूजांजति, पृ. 115 ५. तथैव पृ. 121, पृ. 126 1 9. तथैव पृ. 121. पृ. 126 ! 4. AŽA, Į. 2291 5. तथैव पृ. 2850 1 5600 जैन पूजा काव्य एक चिन्तन

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