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सम्यक ज्ञान से मुक्ति -
ज्ञान लोक दुख जाय भय आन की ज्ञान तें मोक्षतिय बरत हैं जान जी । उरो पियाल लय जाय है ज्ञान यों जजों उर वसो मम आय है। ज्ञान से विश्व का कल्याण
ज्ञान जगभेद सब जान भ्रम भान जी ज्ञान तें मिटे उरक्रोध छल मान जी । ज्ञान उर होय तब धर्म मनभाय है ज्ञान यों जजों उर वसो मम आय है॥
सम्यक् चारित्र का पूजन एवं काव्य
शुभ चारित्र के तेरह प्रकार (अडिल्ल छन्द) -
पंचमहाव्रत सार समिति पाँचों सही गुप्ति तीन मिल तेरह विध जिन ध्वनि कही । यों ही शुभचारित्र भवोदधि नाव हैं सो मैं पूजों थाप यहाँ कर घाव है || ' जीवदया के हेतु महामुनि दोष हटाकर खायें समता सागर सब जिवबन्धु, खानपान सुध पायें | तबहिं अहिंसाव्रत की शुद्धी, होय इसी विधि राखें या ज़ुत सम्यक् चारित पूजों, करके व्रत अभिलाखें ॥
चारित्र की महिमा
चारित का शरणा जिन पाया, ताने जिन भव सफल बनाया। शक्तीप्रद हितकर गिन याक, मैं पूजल मन वच तन ताको॥"
1. तथैव पृ. 52-53
५. तथेत्र, पृ. 35
3. रत्नत्रयायेधान, पृ. 58
4. तमेव पृ. 90
2:46: जैन पूजा काव्य एक चिन्तन