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(4) धार्मिक प्रवृत्ति सम्बन्धी योगदान, (5) कला और पुरातत्त्व सम्बन्धी योगदान, (6) वैज्ञानिक योगदान ।'
डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृष्णदत्त वाजपयी ने स्वयं बिहार के पारसनाथ किले का निरीक्षण कर वहाँ कई जैन मूर्तियाँ तथा शिलालेख प्राप्त किये हैं। प्राप्त सामग्री के आधार पर उनका कथन है कि 10वीं तथा 11वीं शती में वह जैनधर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा होगा। उन्होंने वहाँ पर्यवेक्षण और खुदाई की महती आवश्यकता प्रदर्शित की है।
जैन तीर्थों के अन्य प्रकार
दिगम्बर जैन साहित्य में एक अन्य प्रकार से जैन तीर्थों के मेद प्रचलित पाये जाते हैं, वे इस प्रकार हैं
(1) निर्माण क्षेत्र, (2कल्याणक क्षेत्र, (3) अतिशय क्षेत्र ।
निर्वाण क्षेत्र का वर्णन-निर्वाण क्षेत्र वे कहे जाते हैं जहाँ तीर्थंकरों या किन्हीं तपस्वी मुनिराजों का निर्माण हुआ हो, धर्मशास्त्रों का उपदेश वत-धारित्र-तपस्या आदि सभी साधना निर्वाण-प्राप्ति के लिए हैं। यही आत्मा का चरम और परम पुरुषार्थ है। अतः जिस स्थान पर निर्वाण होता है उस स्थान पर इन्द्र, देव और मनुष्य पूजा को आते हैं। अन्य तीर्थों की अपेक्षा निर्माण क्षेत्रों का महत्त्व अधिक होता है। इसलिये निर्वाण क्षेत्रों के प्रति भक्त जनता की श्रद्धा अधिक होती है, जहाँ तीर्थकरों का निर्वाण होता है उस स्थान पर सौधर्म इन्द्र चिह्न लगा देता है। उसी स्थान पर भक्तजन उन तीर्थंकर भगवान् के चरण चिह्न स्थापित कर देते हैं। आचार्य समन्तभद्र ने स्वयंभूस्तोत्र में भगवान् नेमिनाथ की स्तुति करते हुए बताया है कि ऊर्जयन्त (गिरनार) पर्वत पर इन्द्र ने भगवान नेमिनाथ के चरण चिड़ उत्कीर्ण किये। तीर्थंकरों के निवाण क्षेत्र कल पाँच है- (1) कैलाश पर्वत, (2) चम्पापुर, (४) पावापुर, (4) ऊर्जयन्त (गिरनार), 15) सम्मेदशिखर।
पूर्व के चार क्षेत्रों पर क्रमशः ऋषभदेव, वासुपूज्य, महावीर, नेमिनाथ मुक्त हुए। शेष बीस तीथंकरों ने सम्मेदशिखर से मुक्ति प्राप्त की। इन पाँच निर्वाण क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य मुनिराजों की भी निर्वाण भूमियाँ प्रसिद्ध हैं। जैसे-तारंगा, शत्रुजय, पांगीतुंगी, गजपन्थगिरि इत्यादि।
कल्याणक क्षेत्रों का वर्णन-वे कल्याणक क्षेत्र हैं जहाँ किसी तीर्थकर के गर्भ, जन्म, दीक्षा और कंवलज्ञान कल्याणक-महोत्सव-हुए हैं। जैसे मिथिलापुरी, भद्रिकापुरी, हस्तिनापुर आदि। 1. भारतीय संस्कृति में जैन नीधों का योगदान : डॉ. भागचन्द्र जैन भागेन्द'. प्र.-आखल विश्य जैन
मिशन, अलीगंज (एटा), सन 1961, पृ. 3 2. तथैव, पृ. 20
272 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन