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निर्वाण कल्याणक वर्णन
सित अष्टमि मास अषाढ़ा, तब योग प्रभू ने छोड़ा। जिन लई मोक्ष ठकुराई, इत पूजत चरणा भाई ॥ नेमिनाथ का निर्वाणधाम
श्री नेमिनाथ का मुक्ति थान देखत नयनों अतिहर्ष मान । इक बिम्व चरणयुग तहाँ आय, भविकरत बन्दना हर्ष ठान ॥ पूजा - काव्य रचयिता की भावना
अब दुःख दूर कीजे दयाल, कडे 'चन्द्र' कृपा कीजैं कृपाल मैं अल्प बुद्धि जयमाल गाय, भवि जीव शुद्धि लीग्यो बनाय ॥
श्री चम्पापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा-काव्य
बिहार प्रान्त में नाथ नगर क्षेत्र वर्तमान में प्रसिद्ध है। इसका प्राचीन नाम चम्पापुर नगर है। यहाँ तीर्थंकर वासु पूज्य (बारहवें) स्वामी के पाँच कल्याणक महोत्सव हुए थे। प्रसिद्ध हरिवंश की स्थापना का वही स्थान है। गंगातट पर स्थित इसी नगर में धर्मघोष मुनिने समाधिमरण किया था। गंगा नदी के एक चम्पा नाला नाम के नाले के निकट एक प्राचीन जिनमन्दिर दर्शनीय है। नाथनगर में भी दो दिगम्बर जैन मन्दिर है ।
पं. दौलतराम जी वर्णी ने चम्पापुर तीर्थक्षेत्र पूजा-काव्य की रचना की है। इसमें तेइस पद्म तीन प्रकार के छन्दों में रचित हैं। जिनके पढ़ने से भक्तिरस की धारा बहने लगती है। वासुपूज्य के पूज्य गुणों का स्मरण हो जाता है। उदाहरणार्थ कुछ पद्यों का उद्धरण इस प्रकार है
चाल नन्दीश्वर पूजन, जल अर्पण करने का पद्म-
सम अमित विगतत्रस बारि ले हिमकुम्भ भरा लख सुखद त्रिगदहरतार दे त्रय बार धरा । श्री वासुपूज्य जिनराय निर्वृति धान प्रिया, चन्पापुर थल सुखदाय पूजां हर्ष हिया
रचयिता का भाव
श्री चम्पापुर जो पुरुष, पूजें मन वच काय । वर्ण 'दौल' सो पाय ही, सुख सम्पति अधिकाय ॥'
1. बृहत महाबीर कीर्तन, पृ. 721-723
जैन पूजा - काव्यों में तीर्थक्षेत्र : 289